भाग्य का लिखा कभी नहीं मिटता | Buddha Story in Hindi

Buddha story in hindi: किसी गांव में एक बहुत ही ज्ञानीपंडित रहता था। एक दिन वह अपने बचपन के दोस्त से मिलने के लिए दूसरे गांव में जा रहा था। उसका वह दोस्त बचपन से ही गूंगा और एक पैर से अपाहिज था। उस पंडित के गांव से उसके दोस्त का घर काफी दूर था। वहां जाने के लिए बीच-बीच में कई सारे छोटे-छोटे गांव पड़ते थे। पंडित रास्ते में अपनी धुन में चला जा रहा था।

चलते चलते उसकी मुलाकात एक व्यक्ति से होती है। वह भी पंडित के साथ चलने लगता है। उस आदमी को देखकर पंडित बहुत खुश हो जाता है। उसने सोचा चलो अच्छा हुआ साथ साथ चलने से उसका सफर आसानी से कट जाएगा। बात की शुरुआत करने के लिए उस पंडित ने उस व्यक्ति से उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम धर्मराज बताया।

Buddha ki kahani

पंडित को यह नाम कुछ अजीब सा लगा, लेकिन उसने नाम के विषय में कुछ और पूछना उचित नहीं समझा। दोनों धीरे-धीरे साथ में चल रहे थे तभी रास्ते में एक गांव आता है।

गांव का प्रवेश द्वार आते ही धर्मराज ने पंडित से कहा, तुम आगे चलो, मुझे इस गांव में एक काम है , मैं तुम से आगे मिलता हूँ।
पंडित ने कहां ठीक है वह आगे रिश्ते में चल देता है। कुछ देर बाद उस गांव में खबर फैली कि एक व्यक्ति को सांड ने अपनी सींग में फंसाकर मार दिया है।

जैसे ही सांड ने उस व्यक्ति को मारा, ठीक कुछ ही देर में धर्मराज पंडित के पास आ गया । फिर दोनों चलना शुरू कर देते हैं और चलते चलते एक दूसरे गांव के द्वार पर पहुंच जाते हैं ।

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उस गांव के बाहर एक बड़ा और विशाल मंदिर बना हुआ था। वहां पर आराम करने की सुविधा काफी बढ़िया लग रही थी।
पंडित के दोस्त का घर अभी वहां से बहुत दूर था और रात भी होने वाली थी। तो पंडित ने धर्मराज से कहा रात होने वाली है।

पूरे दिन चलते-चलते थक भी चुके हैं और भूख भी लग रही है। तो यहां पर भोजन करके यही पर हम विश्राम कर लेते हैं। फिर सुबह के समय आराम से आगे की यात्रा जारी करेंगे।

धर्मराज ने कहा ठीक है। मुझे इस गांव में किसी को कुछ जरूरी सामान देने जाना है। तुम भोजन करके आराम करो। मैं बाद में आकर भोजन कर लूंगा। इतना कहकर वह वहां से चला जाता है।

लेकिन उसके जाते ही कुछ ही देर बाद धुआं उठता हुआ दिखाई देता है। और देखते ही देखते पूरे गांव में आग लग जाती है।

पंडित ने हैरानी से सोचा कि यह धर्मराज जहां भी जाता है वहां कोई ना कोई अनहोनी जरूर हो जाती है। कुछ तो गड़बड़ है, इस व्यक्ति में, लेकिन पंडित ने रात्रि में धर्मराज से कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा।

सुबह होते ही दोनों फिर से अपनी यात्रा शुरू कर देते हैं। कुछ देर चलने के बाद, रास्ते में फिर से एक गांव आता है।
धर्मराज ने फिर पंडित से कहा। आप आगे चलिए, मुझे इस गांव में अपने मित्र से मिलने जाना है। मैं अपने दोस्त से मिलने के बाद आगे रास्ते में मिलूंगा। यह कहकर धर्मराज वहां से चला गया।

लेकिन पंडित इस बार आगे नहीं गया। वहीं खड़ा होकर धर्मराज को देखता रहा कि वह कहाँ जा रहा है और क्या करता है।
तभी थोड़ी देर बाद लोगों की आवाज सुनाई देने लगी कि एक व्यक्ति को सांप ने काट लिया है और उसकी मृत्यु हो गई है। ठीक उसी समय धर्मराज फिर पंडित के पास पहुँच गया, लेकिन इस बार पंडित से रहा नहीं गया और उसने धर्मराज से पूछ ही लिया कि तुम जिस भी गांव में जाते हो, वहाँ कोई ना कोई अनहोनी जरूर हो जाती है, क्या तुम मुझे बता सकते हो? यह ऐसा क्यों हो रहा है?

धर्मराज ने कहा पंडित जी आप तो मुझे बहुत ज्ञानी मालूम पड़े थे, इसीलिए मैं आपके साथ चलने लगा था क्योंकि ज्ञानियों का साथ बहुत अच्छा होता है। परंतु आप अभी तक समझ नहीं पाए कि मैं कौन हूँ? पंडित ने कहा, मैं समझ गया हूँ लेकिन मुझे कुछ शंका है।
अगर आप ही अपना उपयुक्त परिचय दे दे तो मेरे लिए आसानी होगी। तब धर्मराज ने जवाब दिया कि मैं यमदूत हूँ और यमराज की आज्ञा से उन लोगों के प्राण हरण करता हूँ जिनकी उम्र पूरी हो चुकी है।

हालांकि, पंडित को पहले से ही इस बात की आशंका थी। फिर भी धर्मराज के मुँह से ये बातें सुनकर वह घबरा गया लेकिन वह हिम्मत करके पूछता है कि अगर तुम सच में यमदूत हो तो मुझे बताओ अगले मृत्यु किसकी है। धर्मराज ने जवाब दिया, अगली मृत्यु तुम्हारे उसी मित्र की है जिससे तुम मिलने जा रहे हो और उसकी मृत्यु का कारण भी तुम ही बनोगे।

ये बात सुनकर पंडित सहम गया और सोच में पड़ गया कि अगर सच में यह धर्मराज यमदूत हुआ तो उसकी बात भी सच होगी और उसके कारण मेरे बचपन के सबसे अच्छे मित्र की मृत्यु हो जाएगी तो सबसे अच्छा तो यही होगा कि मैं अपने मित्र से मिलने ही ना जाऊ।

कम से कम मैं उसकी मृत्यु का कारण तो नहीं बनूँगा। धर्मराज ने मुस्कुराते हुए कहा तुम जो सोच रहे हो वो सब मुझे पता है।
मगर तुम्हारे अपने मित्र से मिलने ना जाने से नियति नहीं बदल जाएगी। तुम्हारे मित्र की मृत्यु तो निश्चित है और वह अगले कुछ ही पलों में घटित होने वाली है।

महाकाल के मुँह से ऐसी बातें सुनकर पंडित को झटका लगा क्योंकि महाकाल ने पंडित के मन की बातें पढ़ ली थी जो कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नहीं है।

अब पंडित को विश्वास हो गया कि यह धर्मराज सचमुच में यमदूत ही है।

जब पंडित को यह पूर्ण विश्वास हो गया कि धर्मराज जी यमदूत है तो वह घबरा गया। वह अपने मित्र की मृत्यु का कारण नहीं बनना चाहता था। इसलिए वह पलटकर अपने गांव की तरफ वापस जाने लगा। लेकिन जैसे ही पंडित वापस जाने के लिए मुड़ा उसने देखा कि उसका मित्र तेजी से उसकी तरफ चला आ रहा है, जोकि पंडित को देखकर अत्यंत प्रसन्न दिखाई पड़ रहा था।

अपने मित्र के आने की गति को देख कर पंडित को ऐसा लगा कि जैसे उसका मित्र काफी देर से उसका ही पीछा कर रहा है। लेकिन वह बचपन से ही गूंगा था और एक पैर से लंगड़ा भी था इसलिए ना तो वह पंडित को आवाज देकर रोक पाया था और ना ही उस तक पहुंच पा रहा था। लेकिन जैसे ही वह पंडित के पास पहुंचा।

अचानक ही जमीन पर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई। पंडित हक्काबक्का होकर धर्मराज की ओर देखने लगा।

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जैसे कि वह पूछना चाह रहा हो कि आखिर क्या हुआ? धर्मराज पंडित के मन में उठ रहे प्रश्नों को समझ गया और बोला, तुम्हारे मित्र ने पिछले गांव में ही तुम्हें देख लिया था और मैं वहीं से ही तुम्हारा पीछा कर रहा था, लेकिन गूंगा और लंगड़ा होने की वजह से वह तुम तक नहीं पहुँच पाया। उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर तुम तक पहुंचने का प्रयास किया, लेकिन बुढ़ापे में बचपन जैसी ताकत नहीं होती। इसलिए हार्ट अटैक होने के कारण उसकी मृत्यु हो गई क्योंकि वह तुमसे मिलने के लिए अपनी सीमाओं को तोड़कर तुम्हारे पीछे भाग रहा था।

इसलिए अपने मित्र की मृत्यु का कारण भी तुम ही कहलाओगे। अब पंडित को पूर्णतः या विश्वास हो गया था कि धर्मराज एक यमदूत है और उसका कार्य जीवों के प्राण हर ना है। लेकिन पंडित एक ज्ञानी व्यक्ति था। वह यह भी जानता था कि मृत्यु पर किसी का वश नहीं है। सबको एक ना एक दिन मरना ही है। यही सोचकर उसने अपने आप को संभाल लिया, लेकिन अचानक ही पंडित के मन में अपनी मृत्यु के बारे में जानने की इच्छा हुई।

इसलिए उसने धर्मराज से पूछा कि जब मृत्यु मेरे दोस्त की होनी थी तो तुम शुरू से ही मेरे साथ क्यों चल रहे थे? यह प्रश्न सुनकर धर्मराज ज़ोर से हंसा और बोला मैं तो हर पल, हर क्षण सभी के साथ चलता हूँ किंतु लोग पहचान नहीं पाते क्योंकि लोगों के पास अपनी समस्याओं के अलावा किसी और व्यक्ति वस्तु या घटना के बारे में सोचने, समझने या उसे देखने का समय ही नहीं होता।

अगर आप इस Story को सुनना चाहते है, तो नीचे Video पर क्लिक करके सुन सकते है।

पंडित ने कहा तो क्या तुम ये बता सकते हो कि मेरी मृत्यु कब, कहाँ और कैसे होगी? महाकाल ने कहा, हालांकि किसी भी सामान्य जीव के लिए अपनी मृत्यु के बारे में जानना ठीक नहीं है, क्योंकि कोई भी जीव हो वो अपनी मृत्यु के बारे में जानकर बहुत दुखी हो जाता है। हालांकि, तुम ज्ञानी व्यक्ति मालूम पड़ते हो और तुमने जिस तरीके से अपने मित्र की मृत्यु को सहन कर लिया है।

उसे देखकर लगता है कि तुम अपनी मृत्यु के बारे में जानकर भी दुखी नहीं होंगे तो तुम्हारी मृत्यु आज से ठीक छह महीने बाद

आज ही के दिन किसी दूसरे राज्य में फांसी लगने से होगी और सबसे हैरानी की बात तो ये होगी कि तुम स्वयं ही खुशी से उस फांसी को स्वीकार कर लोगे। इतना कहकर धर्मराज वहाँ से चला गया क्योंकि अब धर्मराज के पास पंडित के साथ चलते रहने का कोई कारण ना था।

इसके बाद पंडित ने अपने मित्र के शरीर का अंतिम संस्कार किया और यथाशक्ति उसके क्रिया कर्म करके अपने गांव वापस आ गया। लेकिन कोई व्यक्ति कितना भी ज्ञानी क्यों ना हो

अपनी मृत्यु के बारे में जानकर दुखी तो होता ही है और मृत्यु से बचने का कोई ना कोई उपाय भी खोजता है तो पंडित ने भी वही किया क्योंकि पंडित विद्वान था इसलिए उसकी पहचान उस राज्य के राजा तक थी।

पंडित ने सोचा कि राजा के पास तो कई सारे ज्ञानी मंत्री हैं, वो मेरी मृत्यु से संबंधित समस्या का कोई न कोई समाधान निकाल ही लेंगे। पंडित यही सब सोचता हुआ राज़ दरबार में पहुँच जाता है और राजा से सारी घटना के बारे में बताता है।

राजा ने अपने मंत्रियों को सारी समस्या बताई और उनसे सलाह मांगी। अंत में सभी ने विचार विमर्श करके कहा, अगर पंडित की बात सही है तो उसकी मृत्यु भी छह महीने बाद ही होगी, लेकिन मृत्यु तो तब होगी जब वह किसी दूसरे राज्य में जाएगा। यदि वह किसी दूसरे राज्य में जाए ही ना तो मृत्यु ही नहीं होगी।

मंत्रियों की यह सलाह राजा को भी सही लगी। इसके बाद पंडित के रहने की सारी व्यवस्था महल में ही कर दी गई और राजा के आदेश के बिना उस पंडित से किसी को भी नहीं मिलने दिया जाता था। लेकिन पंडित कहीं भी आ जा सकता था ताकि पंडित को ये ना लगे कि वो राजा की कैद में हैं परंतु पंडित डर के मारे स्वयं ही कहीं आता जाता नहीं था।

धीरे धीरे महीने गुजरे गए और पंडित की मृत्यु का समय नजदीक आने लगा और अंततः वह भी दिन आ गया। जिसदिन पंडित की मृत्यु होनी थी।

तो जिस दिन पंडित की मृत्यु होनी थी। उसकी एक रात पहले पंडित डर के मारे जल्दी ही सो गया ताकि जल्दी से वह रात बित जाए और अगला दिन आ जाए ताकि मृत्यु टल सके।

लेकिन पंडित को नींद में चलने की बिमारी थी और अपनी इस बिमारी के बारे में वह स्वयं ही नहीं जानता था। तो फिर राजा, मंत्री या किसी वैध को इसके बारे में बताने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

पंडित अपनी मृत्यु को लेकर बहुत चिंतित था वह पिछले कई दिनों से ठीक है सो भी नहीं पा रहा था और नींद में चलने की बीमारी भी तभी होती है जब व्यक्ति ठीक से शो नहीं पा रहा हो।

तो उस रात भी पंडित को नींद में चलने का दौरा पड़ा। वह उठा और महल से निकलकर अस्तबल में गया, क्योंकि पंडित राजा का खास मेहमान था। इसलिए किसी भी पहरेदार ने उसे नहीं रोका और ना ही किसी तरह की कोई पूछ्ताछ की।

अस्तबल में पहुँचकर वह सबसे तेज चलने वाले घोड़े की पीठ पर सवार होकर नींद में ही अपने राज्य की सीमा से बाहर दूसरे पड़ोसी राज्य में चला गया। इतना ही नहीं वह दूसरे राज्य के राजा के महल में पहुँच गया।

उस महल के पहरेदारों ने भी उसे नहीं रोका और ना ही कोई पूछ्ताछ की। सभी लोग रात्रि का अंतिम प्रहार होने के कारण गहरी नींद में थे। वह पंडित सीधे राजा के सैन्य कक्ष में पहुंचा जहाँ राजा और रानी सो रहे थे वह पंडित वही जाकर सो गया ।
सुबह हुई तो राजा ने पंडित को रानी के बगल में सोया हुआ देखा तो है बहुत क्रोधित हो गया। राजा ने पंडित को कैद करने का आदेश दे दिया।

पंडित गिरफ्तार हो गया, लेकिन पंडित तो भौचक्का था। उसे तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह दूसरे राज्य में और राजा के सैन्य मे कैसे पहुंचा? लेकिन वहाँ उसकी ये सब सुनने वाला कोई नहीं था।
राजा ने पंडित को दरबार में पेश करने का आदेश दिया। कुछ देर बाद उस पंडित को दरबार में लाया गया ।

पंडित को देखते ही राजा इतना आग बबूला हो गया कि उसे फांसी पर चढ़ा देने का हुक्म सुना दिया। फांसी की सजा सुनकर पंडित कांप गया, लेकिन फिर भी थोड़ी सी हिम्मत जुटाकर राजा से बोला महाराज, मैं नहीं जानता कि मैं राजमहल तक कैसे पहुंचा?
मैं यह भी नहीं जानता हूँ कि आपके सैन्य कक्ष तक मैं कैसे आया और आपके महल के किसी पहरेदार या सैनिक ने मुझे रोका क्यों नहीं? लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूँ कि आज मेरी मृत्यु होनी थी और वो होनी भी जा रही है।

राजा को यह बात थोड़ी अजीब लगी। उसने पंडित से पूछा, तुम्हें कैसे पता की आज तुम्हारी मृत्यु होनी है?
राजा के इस प्रश्न के जवाब में पंडित ने पिछले छह महीने का सारा वाक्या राजा को सुना दिया और बोला महाराज मेरा क्या किसी भी सामान्य व्यक्ति में इतना साहस नहीं कि वह राजा के सैन्य कक्ष में राजा की उपस्थिति में रानी के साथ सो जाए।

राजा को पंडित की बात में थोड़ा तर्क दिखाई पड़ा, परंतु उसने सोचा कि यह मृत्यु से बचने के लिए धर्मराज और उसके द्वारा अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी की कहानी बना रहा है।

इसलिए राजा ने पंडित से कहा, यदि तुम्हारी बात सत्य है और आज ये तुम्हारी मृत्यु का दिन है, जैसा कि यमदूत धर्मराज ने तुमसे कहा था तो आज तुम्हारी मृत्यु का कारण मैं नहीं बनूँगा। लेकिन यदि तुम्हारी बात झूठी निकली तो निश्चित ही आज तुम्हारी मृत्यु का दिन होगा क्योंकि जिस राज्य से पंडित आया था। उस राज्य का राजा इस राजा का मित्र था। इसलिए इस राजा ने तुरंत अपने कुछ सैनिकों को पड़ोसी राजा के पास भेजकर पंडित की बात की।

सत्यता का प्रमाण मांगा। भेजे गए सैनिक शाम तक लोटे और उन्होंने राजा को बताया कि महाराज पंडित जो कुछ भी कह रहा है वो सब सत्य है।
पड़ोसी राज्य के राजा ने पिछले छह महीने से पंडित के रहने की सारी व्यवस्था अपने ही महल में कर रखी थी।
पंडित राजा का खास मेहमान था। कल शाम राजा आखरी बार पंडित से उसके कक्ष में मिले थे और उसके बाद यह इस राज्य में कैसे पहुँच गया, इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है।

इसलिए उस राज्य के राजा के अनुसार पंडित को फांसी की सजा देना ठीक नहीं है। लेकिन राजा के सामने एक नई समस्या थी क्योंकि उसने बिना पूरी बात जानें ही पंडित को फांसी की सजा सुना दी थी। इसलिए अगर पंडित को फांसी नहीं दी जाती तो राजा के वचन का अपमान हो जाएगा, लेकिन अगर राजा की बात का मान रखा जाए तो बेवजह ही एक निर्दोष व्यक्ति की मौत हो जाएगी।

राजा ने अपने सभी मंत्रियों से इस बारे में सुझाव मांगा तो मंत्रियों ने राजा को सुझाव दिया कि महाराज
पंडित को एक कच्चे सूत के धागे से फांसी लगवा दी जाए। इससे आपके कथन का भी मान रह जाएगा और कच्चे सूत के धागे से पंडित को फांसी भी नहीं लगेगी और उसके प्राण भी बच जाएंगे।

राजा को मंत्रियों का यह सुझाव पसंद आया और उसने ऐसा ही करने का आदेश दे दिया। पंडित के लिए कच्चे सूत के धागे से फांसी का फंदा बनाया गया और नियम के अनुसार पंडित को फांसी पर चढ़ाया जाने लगा। सभी लोग बहुत खुश थे कि ना तो पंडित मरेगा और ना ही राजा का वचन खाली जाएगा। पंडित को भी पूर्ण विश्वास था। ये सूत के धागे से तो उसकी मृत्यु हो ही नहीं सकती। इसलिए?

उसी पर चढ़ने के लिए तैयार हो गया। जैसा कि धर्मराज ने भविष्यवाणी की थी कि तुम खुद ही अपनी फांसी को स्वीकार करोगे, लेकिन जैसे ही पंडित को फांसी दी गई सूत का धागा तो टूट गया लेकिन टूटने से पहले उसने अपना काम कर दिया था।

पंडित के गले की एक नस सूत के धागे के झटके से कट चुकी थी और पंडित जमीन पर पड़ा तड़प रहा था।
उसी पल उसके गले से खून की फुहार निकल रही थी और देखते ही देखते पंडित का शरीर पूरी तरह से शांत हो गया।

सभी लोग आश्चर्यचकित थे और पंडित को मरता हुआ देख रहे थे। किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि कच्चे सूत के धागे से भी किसी इंसान की मृत्यु हो सकती है। लेकिन घटना तो घट चुकी थी, नियति ने अपना काम कर दिया था और धर्मराज की भविष्यवाणी सच हो चुकी थी।

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है जो होना होता है वो होकर ही रहता है। हम चाहे कितनी ही सावधानी बरतें, कितना ही उपाय कर लें। लेकिन घटना और घटना की पूरी प्रणाली पहले से ही तय होती है। जिसे हम थोड़ा सा भी इधर उधर नहीं कर सकते हैं।

दोस्तों, शायद इसीलिए ईश्वर ने हमें भविष्य जानने की क्षमता नहीं दी है ताकि हम अपने जीवन को ज्यादा बेहतर तरीके से जी सकें और यही बात उस पंडित पर भी लागू होती है।

अगर पंडित ने महाकाल से अपनी मृत्यु के बारे में ना पूछा होता तो छह महीने तक राजा के महल में कैद रहकर डर डर कर जीने की बजाय ज्यादा बेहतर जीवन जीता।

तो दोस्तों उम्मीद करता हूं आपको इस कहानी से एक अच्छी सिख मिली होगी, यह कहानी आपको कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं और इस वीडियो को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे ताकि उन्हें भी इस कहानी से कुछ सिखने को मिल सके। धन्यवाद…

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