आयुर्वेद की अद्भुत शक्ति: भोजन से पहले एक चम्मच खाएं | Buddha Health Tips

जीवन का सबसे कीमती धन क्या होता है? एक शिष्य ने अपने गुरु से सवाल किया। गुरु ने इसका उत्तर देते हुए जवाब दिया कि चाहे मेरे पास पैसे ना हो, चाहे रहने के लिए छत भी ना हो, चाहे कोई सुख सुविधाएं ना हो, लेकिन अगर मेरा शरीर स्वस्थ है तो मैं दुनिया का सबसे धनवान आदमी हूँ। शिष्य ने पूछा कि गुरुदेव आपकी उम्र 100 साल को पार कर चुकी है और फिर भी आप इतने स्वस्थ है, आपकी बुद्धि बडी ही तीव्र है और आपका चेहरा भी सूर्य की तरह चमकता रहता है।

और वहीं पर आपके बदन से भी चंदन सी खुशबू आती है। शिष्य ने कहना जारी रखा कि गुरुदेव मेरे मन में बहुत बार आया है की मैं आपसे इसका रहस्य जानू, लेकिन संकोचवश मैं आपसे पूछ नहीं पाता हूँ। कृपया करके आज मुझे वो साधारण से नियम बताने की कृपा करें, जिनसे मैं भी आपकी तरह स्वस्थ और निरोगी रह सकूँ। नियम अगर आसान होंगे गुरुदेव तो उसका अनुसरण मेरे माता पिता भी कर पाएंगे, क्योंकि वो बूढे हो चूके हैं और वो बहुत जटिल प्रक्रिया नहीं अपना पाएंगे।

Buddha Health Tips in Hindi

कृपया करके साधारण से तरीके बताना ताकि कोई भी ग्रस्त आदमी उन नियमों का पालन कर सकें। गुरुदेव ने कहना आरंभ किया सबसे पहले उन्होंने बताया कि सबसे पहले तुम्हें पाचन तंत्र की क्रिया को समझना होगा। जो भी आयुर्वेद का विद्वान होता है वो ये जानता है कि अगर आपका पाचन तंत्र लगातार भोजन पचाने में लगा हुआ है तो स्वाभाविक है कि ऊर्जा की एक खास मात्र आपके भोजन को बचा रही है।

इसी कारण ज्यादा भोजन करने के बावजूद आपका दिमाग और आपका शरीर अपने बेहतरीन स्तर पर काम नहीं कर पाता। तुमने देखा होगा कि भोजन करने के बाद जब पाचन प्रक्रिया शुरू होती है तो हर जानवर नीचे बैठ जाता हैं। वो बस बैठ जाते हैं क्योंकि दूसरी चीजों के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं बचती है। चाहे वो मांसाहारी हो या शाकाहारी हो। हर जानवर खाने के बाद नीचे बैठ जाता है और ये इंसानों के लिए भी एक प्राकृतिक जरूरत है। खाने के बाद वो बैठ जाना चाहते हैं क्योंकि दूसरी चीजों के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं होती।

अगर आप अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आप अपने शरीर को ऐसा बनाकर रखिए कि आप जो भी खाएं, कुछ भी खाएं, तो डेढ से 2 घंटे के अंदर आपका पेट खाली हो जाना चाहिए। पेट खाली होने का मतलब है पेट की थैली खाली होना। यानी की जब भोजन आंत के दूसरे भागों में चला जाता है तब पेट खाली हो जाता है क्योंकि आंत में प्रक्रिया बिल्कुल अलग होती है। वो पाचन नहीं होता है, वो ऊर्जा को ग्रहण करती है। आंतों द्वारा इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए ज्यादा ऊर्जा नहीं लगती है।

ऊर्जा लगती है। पाचन क्रिया में जब खाना पेट की थैली में मौजूद हो तो बेहतर है की आप अपनी गतिविधि को कम कर लें। अब अगर सोचिये सारा दिन आपके पेट में खाना मौजूद रहेगा तो आप अपने जीवन की पूरी क्षमता कम कर लेंगे। आप खुद देखिए कि जब आपके पेट में खाना मौजूद होता है तब शरीर कैसा महसूस करता है और जब पेट खाली होता है तब शरीर कैसा महसूस करता है? आप खुद पाएंगे कि आपका शरीर और आपका दिमाग तब बेहतरीन रूप से काम करता है जब आप का पेट खाली होता है।

इसका एक पहलू और है। देखिये हम सब जानते हैं कि हमारा शरीर हर समय नई कोशिकाएँ बनाता रहता है और पुरानी कोशिकाएँ खत्म करता रहता है जिससे हमारे शरीर का शुद्धिकरण होता रहता है। लेकिन जब भोजन हमारे पेट में होता है यानी की हमारा पेट जब खाली नहीं होता तो ये शुद्धिकरण 80% कम हो जाता है। वो सारी गंदगी जो शरीर से अपने आप बाहर निकलती थी, अब वो निकलनी बंद हो जाएगी जो कुछ समय बाद आप के लिए तरह तरह की समस्याएं पैदा करेंगी।

देखिये योग में पेट का हमेशा साफ रहना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। किसी भी पारंपरिक प्रणाली में अगर आप देखेंगे तो आप पाएंगे कि जब भी आप किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर या किसी वैध के पास जाते हैं तो सबसे पहले वो आपके पेट की सफाई करते है क्योंकि वो जानते हैं कि आपकी ज्यादातर समस्या पेट साफ ना होने की वजह से ही है। सिर्फ एक दिन के लिए अपने पेट को पूरी तरह से साफ करने के बाद महसूस करें, कि आपको कैसा महसूस होता है। आप अपने अंदर बहुत हल्का और सुंदर महसूस करेंगे।

हर दिन आपको इसी तरह महसूस होना चाहिए। आमतौर पर पारंपरिक रूप से घी को पहले निवाले के रूप में खाया जाता है। घी एक चिकनाई वाला पदार्थ है जो पूरी आहार नली को चिकनाई देता है। आपको सबसे पहले इसे ही खाना चाहिए, ताकि यह भोजन के प्रवाह को आसान बना दें। जब आप बहुत मसालेदार भोजन खाते हैं तो उसे खाने से पहले आपके भोजन मार्ग पर घी की परत चढाना बहुत अच्छा होता है। घी का महत्त्व ये है की ये आहार नली को साफ रखता है।

तो जो व्यक्ति घी का उचित तरीके से सेवन करता है, उसका पेट हमेशा साफ रहेगा, क्योंकि वहाँ कुछ नहीं चिपकता। वहाँ कुछ भी लंबे समय तक ठहर ही नहीं सकता। पेट का कैंसर, आंत का कैंसर, आजकल ये बहुत ज्यादा हो रहा है तो अगर आप एक निश्चित मात्रा में घी का सेवन करते हैं तो ये घटना बहुत कम हो जाती है लेकिन उसके लिए घी सही गुणवत्ता का होना चाहिए। सही तरीके से गाय या भैस के दूध से बनाया जाए। अगर घी को उचित तरीके से गाय या भैस के दूध से बनाया जाए, तो इसके कई महत्वपूर्ण फायदे होते हैं।

शिष्य ने सवाल पूछा कि गुरुदेव पाचन क्रिया तुम्हें कुछ कुछ समझ गया हूँ लेकिन आप ये बताये कि आप की तरह सूर्य जैसा तेज पाने के लिए चमकता हुआ चेहरा प्राप्त करने के लिए क्या प्रक्रिया अपनानी चाहिए? गुरु ने इसका उत्तर देते हुए कहना शुरू किया कि देखिये आज के समय में बहुत सारे लोग सुबह उठते ही खाली पेट चाय पीते हैं। चमकता हुआ तेजस्वी मुख पाने के लिए हमें कुछ प्रक्रिया नहीं अपनानी। हमें बस अपनी दिनचर्या सही करनी है, अपना खानपान सुधारना है।

सुबह खाली पेट चाय पीना जहर के समान होता है वो धीरे धीरे आपके अंदर आपकी आंतों को कमजोर कर देता है। पेट में धीरे धीरे एसिडिटी होने लगती है और अपने आप मन और मस्तिष्क सुस्त पडते जाते है। सुबह उठते ही तुम्हें तांबे, चांदी या मिट्टी के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना चाहिए। लेकिन चांदी और मिट्टी की तासीर ठंडी होती है। इसीलिए कफ, अस्थमा या दमा जैसे रोगी इसका उपयोग ना करें। रात में आपने चांदी, तांबे या मिट्टी के बर्तन में पानी रख दिया।

और सुबह खाली पेट बिना दाँतुन किये हुए उसे पीलिया। शिष्य ने सवाल किया कि गुरुदेव बिना दाँतुन किए हुए अगर हम वो पानी पीयेंगे तो हमारा बासी थूक हमारे अंदर ही चला जाएगा। गुरु ने उसे बताया कि वो तो अच्छी बात है क्योंकि बासी थूक औषधि के समान होता है। गुरु ने चेतावनी दी कि देखिए जिन लोगों को अलसर, टीबी या निमोनिया हैं उन्हें खाली पेट पानी नहीं पीना है। तांबे के बर्तन में रात में रखे हुए पानी में उसके संस्कार मिल जाते हैं। तांबे के गुण उस पानी में आ जाते हैं।

और वो तांबा हमारे शरीर में जाकर बहुत से लाभकारी फायदे करता है। गुरु ने चेतावनी दी कि अगर मजबूरी ना हो तो, प्लास्टिक की बोतल में कभी पानी मत पीना, क्योंकि प्लास्टिक की एक ऐसी संरचना होती है जब वो गर्म तापमान पर आता है तो प्लास्टिक धीरे धीरे पिघलना शुरू हो जाता है और जब वो बहुत बारीक स्तर पर पिघलता है तो उसके कारण उस पानी में मिल जाते हैं जो हमारे शरीर में जाकर कैंसर का कारण बन सकते हैं। देखिये ये पानी पीने के बाद अपना पेट अच्छे से खाली करने के बाद आप आमला और सब्जियों का रस पी सकते हैं।

आप पीने में कुछ लोगों को थोडा कडवा लग सकता है लेकिन जहाँ पर शरीर को इतने सारे फायदे हो रहे हो, वहाँ पर थोडा कडवा पन तो बर्दाश्त किया जा सकता है। गुरु ने बताया कि ये भी सच्चाई है कि हर दिन एक जैसा खाना नहीं खाया जा सकता। तो जीस दिन तुम आमला और सब्जियों का जूस ना पी सको, उस दिन आपको दही खाना चाहिए। दही बहुत ही बेहतरीन आयुर्वेदिक औषधि के रूप में इस्तेमाल हो सकता है। अगर उसको सही से इस्तेमाल किया जाए तो हमारे शरीर में बहुत सारी बीमारियों को वो जड से खत्म कर सकता है। दही की एक पर्याप्त मात्रा लेकर उसमें गुड, शक्कर या मिश्री का मिश्रण जरूर कर लें।

ताकि आपको वो दही खट्टा ना लगे। अगर दही में गुड मिलाते हैं तो गुड बहुत ज्यादा नया नहीं होना चाहिए। गुड जितना ज्यादा पुराना होगा, उतना ही लाभकारी होगा और दही को थोडा पतला कर ले। पतला होने के बाद वो आसानी से हमारे शरीर में जा सकता है और उसको पचने में भी ज्यादा ऊर्जा शरीर को नहीं लगानी पडती।

आयुर्वेद के गणित के हिसाब से अगर आप सुबह इन प्रक्रियाओं का पालन करते हैं तो आपके चेहरे का तेज बढने लगेगा, उस पर चमकाने लगेगी। जल्द ही लोग आपसे बोलना शुरू कर देंगे, की भाई आपकी उम्र इतनी ज्यादा हो गयी लेकिन आप लगते नहीं हो इतनी उम्र के। संन्यासियों और मुनियों जैसा तेज पाने के लिए ध्यान और आयुर्वेद के नियम के हिसाब से खानपान, ये दो चीजें सबसे ज्यादा जरूरी होती है। अगर ग्रस्त आदमी भी इन नियमों का पालन करता है तो वो भी संन्यासियों जैसा तेजस्वी हो सकता है।

शिष्य ने आखरी प्रश्न किया कि गुरुदेव मुझे यह दो नियम तो अच्छे से समझ में आ गए हैं। पहला नियम अपने पेट को खाली रखेंगे, तो हर बिमारी से मुक्त रहेंगे। दूसरा नियम कि हम अपने चेहरे पर ओज और तेज कैसे प्रकट कर सकते हैं? बस एक आखिरी समस्या का समाधान और करवाना है। मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि जैसे जैसे आदमी की उम्र बढती है तो उसके आंखो की और उसके दिमाग की क्षमता कम होती जाती है तो उस क्षमता को बरकरार बनाए रखने के लिए किन नियमों का पालन करें?

या फिर क्या खानपान अपने दैनिक जीवन में अपनाएं? गुरु ने खुद की तरफ इशारा करते हुए कहा कि जैसे जैसे उम्र बढेगी वैसे वैसे बुद्धिमान होते जाओगे। बस मैं जो नियम बता रहा हूँ उनको ध्यान से सुन लो, सुन लोगे तो सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। सबसे पहले सफेद कद्दू के औषधीय गुणों के बारे में जानो। आयुर्वेद के गणित के हिसाब से सफेद कद्दू का जूस कैंसर को मिटाता है और साथ ही दिमाग की तीक्ष्णता को बढाता है।

तीक्ष्णता यानी की तेज, बारीक बुद्धि। लेकिन ये समझ लेना कि सफेद कद्दू का जूस ठंडा होता है, इसीलिए अस्थमा और जिनको सर्दी जल्दी पकड लेती हो, ऐसे लोगों को सफेद कद्दू के जूस का सेवन नहीं करना है। दिमाग और आँखों को तेज करने के लिए जो अगला नुस्खा मैं बता रहा हूँ वह हर कोई कर सकता है बल्कि हर किसी को करना चाहिए। पांच देसी बादाम की गिरी, जो छोटी वाली होती है, क्योंकि वहीं देसी होती है। बडी वाली में इतने गुण नहीं होते हैं।

इतना छोटी वाली गिरी में होते हैं पांच छोटी बादाम गिरी और एक अखरोट रात को पानी में भिगो दो। सुबह उनके छिलके उतारो और उन्हें किसी पत्थर के खरल में, याद रखना पत्थर का खरल, किसी ऐसे वैसे बर्तन में नहीं, क्योंकि इससे उसकी गुणवत्ता खत्म हो जाती है। उस पत्थर में ये डालने के बाद उसे मथना शुरू करो। धीरे धीरे जब आप उसे पिसेंगे तो वो बारीक होने लगेगा और उसके बाद उसमें दूध डालना शुरू करो ऊपर से। दूध गाय का होना चाहिए, वो सबसे ज्यादा बेहतरीन रहेगा, दिमाग के लिए।

इस्तेमाल करने को भैस या बकरी का भी कर सकते हैं। लेकिन गाय का दूध सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। जब दिमागी समस्याओं के बारे में बात आती है तो, अब उस बादाम और अखरोट को दूध के साथ पीसना शुरू करो। धीरे धीरे जितना आप पीसेंगे उतनी उसकी गुणवत्ता बढती जाएगी। अब कुछ लोगों को लग रहा होगा की दूध के साथ हम बादाम यूं ही खा ले तो या फिर पत्थर के खरल में पीसने की बजाय उसे मिक्सी में पीस लें।

तो मैं बताता चलूं कि पत्थर के खरल में उसे पीसने के बाद उसकी गुणवत्ता १०० गुना ज्यादा बढ जाती है। अच्छे से गाय के दूध में पीसने के बाद जब आप इसका सेवन करेंगे, तो आपकी आंखें और आपका दिमाग इनके लिए ये बहुत ही लाभकारी रहेगा। जिन लोगों को भूलने की समस्याएं होती हैं जो छोटी छोटी चीजें रखकर भूल जाते हैं, जो लोग दिमागी रूप से परेशान रहते हैं, तनाव बना रहता है, चीज़ो के बारे में ज्यादा सोचते रहते हैं।

ऐसे लोगों के लिए ये एक ठंडाई का काम करेगा, उनके दिमाग में एक ठंडक पहुंचाएगा, जिससे उनका दिमाग अपने बेहतरीन स्तर पर काम कर पाएगा? शिष्य ने ये नियम अच्छे से कंठस्थ कर लिए और उसके बाद घर जाने के लिए अपने गुरु से आज्ञा मांगी। शिष्य अपने गुरु से आशीर्वाद लेकर अपने घर की तरफ प्रस्थान कर गया।

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