बुद्ध अपने शिष्यों को श्मशान क्यों भेजते थे | Buddha aur shamshan ki kahani

क्या आप जानते हैं गौतम बुद्ध के बारे में। एक बात प्रसिद्ध थी कि वो कुछ लोगों को तो सीधे अपना शिष्य बना लेते थे। और बौद्ध संघ में शामिल कर लेते थे। लेकिन कुछ लोगों को। अपना शिष्य बनाने से पहले। वो उन्हें कुछ दिनों के लिए शमशान घाट में जाकर रहने के लिए कहते थे। और फिर उसके बाद ही संघ में शामिल करते हैं। तो आखिरकार वो ऐसा क्यों करते थे? इसे आप जानेंगे इस कहानी के माध्यम से.

Buddha aur shamshan ki kahani

एक दिन महात्मा बुद्ध से दूर हिमालय से एक व्यक्ति मिलने आता है और वह बुद्ध से कहता है, मैं आपके संघ में शामिल होना चाहता हूं? कृपया करके आप मुझे दीक्षा दीजिए और अपने संग में शामिल होने दीजिए।ये बातें सुनने के बाद गौतम बुद्ध उसे व्यक्ति की आंखों में देखते हैं और कहते हैं , मैं तुम्हें संघ में शामिल नहीं कर सकता। अगर तुम्हें संघ में शामिल होना है।

तो उससे पहले तुम्हें एक पूरा दिन और रात श्मशान में गुजारनी पडेगी। यह सुनते ही वह व्यक्ति डर जाता है और कहता है बुद्ध यह कैसी शर्त है? दिन में तो ठीक है लेकिन मैं रात को श्मशान में नहीं रुक सकता। बुद्ध ने पूछा रात में क्यों नहीं रुक सकते? व्यक्ति ने कहा क्योंकि रात होते ही श्मशान में भूत, प्रेत और आत्माओं घूमने लगती है। बुद्ध ने पूछा? क्या तुमने कभी किसी भूत प्रेत या आत्मा को अपनी आँखों से देखा है? व्यक्ति ने कहा, नहीं। बुद्ध मैंने अपनी आँखों से तो नहीं देखा, लेकिन मैंने लोगों के मुँह से भूत, प्रेत और आत्माओं के होने की कहानियाँ जरूर सुनी है। और मैंने कुछ लोगों को भूत प्रेत लगते भी देखा है।

ऐसे लोग बहुत अजीब अजीब सी हरकतें करने लगते हैं। बुद्ध ने कहा तो फिर यह तुम्हारे लिए एक बहुत ही सुनहरा मौका है, यह जानने का कि क्या सच में भूत प्रेत और आत्माएं होती भी है या नहीं? व्यक्ति ने कुछ देर तक सोचा फिर कहा। ठीक है, बुद्ध अगर आपकी यही शर्त है तो एक पूरे दिन और एक पूरी रात के लिए मैं श्मशान मैं रुक जाऊंगा। इसके बाद वह व्यक्ति बुद्धि से आज्ञा लेकर , अपने घर वापस चला जाता है। सुबह होते ही व्यक्ति फिर बुद्ध के पास आता है और शमशान जाने की आज्ञा मांगता है। बुद्ध ने कहा ठीक है, तुम श्मशान जा सकते हो, लेकिन एक बात का ध्यान रखना।

इसे भी पढ़े 👉 आयुर्वेद की अद्भुत शक्ति: भोजन से पहले एक चम्मच खाएं

पूरे दिन और रात में तुम जो कुछ भी वहाँ देखोगी या जो भी घटना तुम्हारे साथ वहाँ घटेगी वो सब कुछ तुम मुझे आकर बताओगे। उसने कहा ठीक है, मैं आपको बता दूंगा । इसके बाद वह व्यक्ति श्मशान के लिए निकल पडता है। उसके जाते ही बुद्ध अपने दो शिष्यों से कहते हैं। तुम दोनों उसके पीछे जाओ और उसका ध्यान रखना, लेकिन ध्यान रहे उसे यह बात पता नहीं लगनी चाहिए कि तुम दोनों उसके आस पास ही हो। वे दोनों शिष्य भी चुपचाप उस व्यक्ति के पीछे पीछे श्मशान की तरफ चले जाते है। एक पूरा दिन और रात शमशान में गुजारने के बाद अगली सुबह वह व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास वापस आता है। बुद्ध ने पूछा बताओ क्या तुमने देखा वहाँ? व्यक्ति ने कहा, बुद्ध मेरे श्मशान में पहुंचने के कुछ देर बाद।

मैंने देखा कि वहाँ एक अर्थी आई। उसके पीछे एक बडी भीड थी। वह अर्थी एक बूढे व्यक्ति की थी। उस बूढे व्यक्ति के चारों बेटों ने अर्थी को कंधा दे रखा था। चारों बहुत दुखी दिखाई पड रहे थे। वही अर्थी के पीछे चलने वाले कुछ लोग बातें कर रहे थे कि अच्छा इंसान था बेचारा लेकिन अब नहीं रहा।

वहीं कुछ लोग यह भी कह रहे थे कि अच्छा हुआ इसके साथ बेचारा बूढा बिना किसी ज्यादा दर्द और पीडा के इस दुनिया से चला गया। इसी तरह और भी लोग उसके बारे में तरह तरह की बातें कर रहे थे। फिर उस बूढे को चिता पर लिटाया गया और उसके बडे बेटे ने उस चिता को अग्नि दी। फिर सभी लोग वहीं पास के ही तालाब से नहाकर वहाँ से चले गए। उसके बाद मैं काफी देर तक वहीं बैठा हुआ उस जलती हुई चिता को देखता रहा फिर जब दोपहर हुई तो वहाँ एक और अर्थी आई जो की एक जवान औरत की थी।

उस औरत का पति उस अर्थी के आगे चल रहा था। वह बहुत दुखी था। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। अर्थी के पीछे चलने वाले कुछ लोग कह रहे थे कि बहुत गलत हुआ। इस लडके के साथ इतनी सी उम्र में ही इसकी पत्नी ने इसका साथ छोड दिया। अभी तो बेचारे की पूरी जिंदगी पडी है। दो छोटे बच्चे हैं, वह अकेले कैसे उनकी परवरिश करेगा? भगवान ने बहुत गलत किया। इसके अलावा वहाँ कुछ महान ज्ञानी व्यक्ति भी थे जो उस मृत्यु स्त्री के पति को समझा रहे थे कि रो मत क्योंकि आज नहीं तो कल उसे यहाँ आना ही था।

किसी को पहले ही तो किसी को बाद में, लेकिन एक दिन सब को यहाँ आना है। कोई मृत्यु से बच नहीं सकता। सब कुछ यहीं रह जाता है। इसलिए हमें क्रोध, चिंता, लालच और बुरे कर्मों से बचना चाहिए और इसी तरह की और भी ज्ञान की बाते वो सभी ज्ञानी व्यक्ति आपस में करते रहे थे।

फिर उस स्त्री के पति ने उसकी चिता को अग्नि दी और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। उसे रोता देख कुछ लोग उसे सांत्वना देने आ गए । फिर उन सभी लोगों ने भी पास के ही तालाब से स्नान किया और वहाँ से चले गए। मैं इस बार भी बैठा हुआ उस स्त्री की चिता को जलते देखता रहा। जब शाम होने को थी तो वहाँ दो अर्थियां और आई एक अर्थी महंगे फूल मालाओं से सुसज्जित।

उसके पीछे जो लोग थे वो बडे खानदान से लग रहे थे और उसके पीछे लंबी भीड भी थी। देखने से ही लग रहा था कि यह किसी अमीर व्यक्ति की अर्थी है। दूसरी अर्थी बहुत ही साधारण सी थी और उसके पीछे बहुत ही कम लोग थे। वह जरूर ही किसी बहुत गरीब व्यक्ति की अर्थी रही होगी। अमीर व्यक्ति की चिता को चंदन की लकडी से तैयार किया गया था। जबकि गरीब व्यक्ति की चिता को साधारण लकडी से।

अमीर व्यक्ति की चिता को पहले अग्नि दी गई। फिर गरीब व्यक्ति की चिता को। बुद्ध ने पूछा क्या तुम्हें उनकी चिताओं में कोई अंतर दिखा? व्यक्ति ने कहा नहीं, मुझे तो कोई अंतर नहीं दिखा। दोनों के शरीर एक समान ही जले और अंत में राख हो गए।बुद्ध ने पूछा फिर क्या हुआ? व्यक्ति ने कहा उसके बाद रात हो गई और वहाँ कोई नहीं आया।

बुद्ध ने फिर पूछा क्या तुम्हें वहाँ रात में भूत प्रेत और आत्माएं दिखी? व्यक्ति ने कहा नहीं, मुझे वहाँ कुछ भी नहीं दिखा। लेकिन मैं वहाँ पूरी रात खुद से ही डरता रहा। कभी हवा की सरसराहट से तो कभी जानवरों की आवाज से और फिर सुबह हो गई और मैं आपके पास आ गया। बुद्ध ने कहा, बहुत बढियाँ किया लेकिन मैं तुम्हें संघ में शामिल नहीं कर सकता?

व्यक्ति ने कहा, लेकिन क्यों? बुद्ध ने कहा क्योंकि तुम अभी उसके लिए तैयार नहीं। संघ में शामिल होने के लिए तुम्हें एक बार और एक पूरा दिन और रात श्मशान में गुजारनी पडेगी। व्यक्ति ने बुद्ध को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन बुद्ध नहीं माने तो उसने दोबारा श्मशान में जाना स्वीकार कर लिया।

इसे भी पढ़े 👉 किसी के मन को पढ़ने का रहस्य

अगली सुबह बुद्ध से आज्ञा लेकर वह फिर श्मशान की ओर निकल पडा। बुद्ध ने इस बार फिर उसे व्यक्ति की सुरक्षा के लिए उसके पीछे अपने दो शिष्य फिर भेज दिए दो। एक पूरा दिन और एक पूरी रात श्मशान में गुजारने के बाद वो फिर बुद्ध के पास आया। बुद्ध ने फिर वही प्रश्न किया, बताओ क्या देखा तुमने वहाँ?

व्यक्ति ने कहा, बुद्ध कल मेरे सामने आठ लोगों की चिंताओं को अग्नि दी गई और उन सबके साथ भी वही घटनाएं हुईं जो मैंने पिछली बार आपको बताई थी कि बहुत से लोग रो रहे थे, कुछ उन्हें सांत्वना दे रहे थे और कुछ ज्ञानी व्यक्ति तरह तरह की बातें कर रही थी। लेकिन एक अलग चीज़ जो मैंने इस बार देखी वो ये थी कि कुछ मृत व्यक्तियों के शरीर के कुछ हिस्से जो ठीक से नहीं जल पाए थे, उन अधजले हिस्सों को चील कौवे और जानवर नोच नोचकर खा रहे थे।

कुत्ते कुछ हड्डियों को अपने साथ उठा ले गए। यह सब देखकर मुझे एक चीज़ का एहसास हुआ कि जिस शरीर को हम इतना महत्त्व देते हैं। उसका अंत भी एक दिन इसी प्रकार होना है। व्यक्ति ने कहा, बुद्ध अब तो मैं बौद्ध संघ में शामिल हो सकता हूँ। बुद्ध ने कहा नहीं, मैं अब भी तुम्हें संघ में शामिल नहीं कर सकता। व्यक्ति ने कहा, लेकिन बुद्ध मैं तो आपके कहीं गई बात के अनुसार दो बार शमशान में रहकर आ चुका हूँ। अब तो आपको मुझे संघ में शामिल करना ही पडेगा।

बुद्ध ने कहा, जिंस महत्वपूर्ण चीज़ को देखने के लिए मैंने तुम्हें श्मशान भेजा था, तुम अब तक उसे नहीं देख पाए हों, इसलिए मैं तुम्हें संघ में शामिल नहीं कर सकता और तुम जब तक श्मशान में वो नहीं देख लेते जिसके लिए मैंने तुम्हें वहाँ भेजा था, तब तक तुम संघ में शामिल नहीं हो सत्य। यह सुनते हुए व्यक्ति फिर से आज्ञा लेकर अगली सुबह श्मशान की तरफ निकल पडता है।

वह एक पूरा दिन और रात श्मशान में गुजारता है, लेकिन इस बार उसके अंदर अलग ही चमक आ चुकी थी, उसने वह घटना देख ली थी जो बुद्ध उसे दिखाना चाहते थे। अगली सुबह होते ही उसे बुद्ध के पास पहुंचने की जल्दी नहीं थी। वो अंदर से एकदम शांत और स्थिर हो गया था। उसके चेहरे पर गंभीरता आ गई थी। वह धीरे धीरे चलता हुआ। गौतम बुद्ध के पास पहुंचा।

और उन्हें प्रणाम कर बिना कुछ बोले शांति से बैठ गया। बुद्ध ने फिर वही प्रश्न किया। क्या देखा तुमने वहाँ? व्यक्ति ने कहा। मैंने देखा कि चार लोग मुझे अर्थी में लिटाकर शमशान की तरफ ला रहे हैं। लोग मेरी अर्थी के ऊपर फूल मालाएं फेंक रहे हैं। एक बहुत बडी भीड मेरी अर्थी की पीछे पीछे चल रही है। मेरे पिता जो कि मेरी मौत से बहुत दुखी हैं, वो रोते हुए मेरी अर्थी के साथ चल रहे हैं।

मेरा छोटा भाई भी मेरी मौत से बहुत दुखी हैं और रो रहा है। कुछ लोग मेरे भाई और पिता को समझा रहे हैं और उन्हें सांत्वना दे रही है। भीड में चल रहे हैं। कुछ लोग भी मेरी मौत से दुखी हैं और कुछ दुखी होने का दिखावा कर रहे हैं। भीड में से कुछ लोग बातें कर रहे हैं कि अच्छा इंसान था अभी उम्र ही क्या थी बच्चे की? लेकिन भगवान ने इसे इतनी जल्दी बुला लिया और भी लोग मेरे बारे में तरह तरह की बातें कर रहे हैं

फिर मेरी अर्थी को श्मशान की जमीन में रख दिया गया। मैं सांस लेना चाहता था। लेकिन मेरे अंदर सांस नहीं थी। मैं अपने हाथ पैरों को हिलाना चाहता। लेकिन मैं हिला नहीं पा रहा था । मैं अर्थी से उठकर अपने पिता को गले से लगाना चाहता था। और अपने छोटे भाई से ये कहना चाहता था कि माता पिता का ध्यान रखना।

क्योंकि अब तुम ही हो जिसे पूरे घर को संभालना है। उसके बाद मुझे उठाकर चिता में लिटा दिया गया। फिर मुझे एक कपडे से ढक दिया गया। उस कपडे के बाहर मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। फिर मेरे ऊपर बहुत सी लकडियां रख दी गई, वो मुझे बहुत भारी लग रही थी। मैं उन्हें हटाना चाहता था। मुझे अंदर घुटन महसूस हो रही थी।

फिर कुछ समय पश्चात मुझे गर्मी का आभास हुआ। मैंने देखा कि मेरे पूरे शरीर पे आग लग चुकी थी। मेरा पूरा शरीर किसी लकडी की भांति चल रहा था। मैं चिल्ला या लेकिन मेरे मुँह से आवाज नहीं निकली। मैं उस अग्नि में पूरी तरह से खो गया था। मैं पूरी रात खुद को ऐसे ही जलता देखता रहा और अंत में मैंने पाया कि मैं राख में तब्दील हो चुका हूँ।

उस पूरी रात मैं पता नहीं कहाँ खोया रहा। ना तो मैं डरा और ना ही मुझे किसी प्रकार के डर का एहसास। और सुबह होते ही मैं आपके पास आ गया। यह सब सुन बुद्ध मुस्कुराए और बोले अब तुम संघ में शामिल हो सकते हो। बुद्ध ने आगे कहा, जीवन को वही व्यक्ति समझ सकता है जिसने मृत्यु को समझ लिया हो। जैसे एक बीमार व्यक्ति ही सवस्थ रहने के महत्वपूर्ण अच्छे से समझ सकता है। वास्तव में गहरे ध्यान और साधना में उतरने के लिए अंदर ज्ञान का बीज होना बेहद आवश्यक है और वह ज्ञान का बीज कल रात तुम्हें वहाँ मिला।

इसे भी पढ़े 👉 10 आसान आदतें जो 30 दिन में आपको एक नया इंसान बना देंगी

तुमने वहाँ जाकर ये महसूस कर लिया कि तुम्हारा शरीर नश्वर है और तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं जाने वाला, सब यहीं रह जाएगा। जब तुम पहले दो बार समसान गए तो तुम भी उन्हें ज्ञानी व्यक्तियों की तरह ही थी, जो श्मशान में जाते ही धार्मिक हो जाते हैं, जिन्हें वहाँ जाते ही मृत्यु की याद आती है, शरीर के नस्वर होने की याद आती है।

और वहाँ बडी बडी बातें करते हैं, लेकिन वहाँ से निकलते ही फिर पहले जैसे हो जाते हैं, वैसे ही सारे बुरे काम करते हैं, अधर्म करते हैं, खुद के शरीर से मोह करते हैं, इसे अमर मान लेते हैं और दूसरों से ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वह यहाँ हमेशा रहने वाले हैं। लेकिन जब तुम तीसरी बार वहाँ गए तो तुम्हें अंदर से यह आभास हुआ कि तुम असल में वो नहीं हो जो तुम खुद को मानते । खुद के अंदर गहरा ध्यान और समर्पण पैदा करने के लिए शरीर की नस वर्ता और मृत्यु का अनुभव करना बेहद आवश्यक। अब जो ज्ञान का बीज तुमने कल रात वहाँ पाया है। उसे अपने ध्यान में परिवर्तित करना है और उसे इतना बडा करना है, जो व्यक्ति तुम्हारे पास आए उसकी समस्या को तुम आसानी से दूर कर सको।

सीख: इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमारा शरीर नश्वर है यह एक दिन खत्म हो जाएगा, अगर किसी व्यक्ति ने जन्म लिया है की मौत निश्चित है, इसलिए हमें क्रोध, हिंसा, लालच, जैसी बुरी आदतों को आज ही छोड देना चाहिए पता नहीं आज हम है, कि कल भी होंगे इसलिए हमें वर्तमान समय में अच्छे काम करने चाहिए।

आपको यह पोस्ट केसी लगी?
+1
0
+1
0
+1
1

अपना सवाल/सुझाव यहाँ बताये