गौतम बुद्ध ने कहा, इन 5 जगहों पर चुप रहना सिखों | A Buddhist Story on Peace

इन 5 जगहों पर चुप रहना सीखो

in 5 jagahon par chup rahana seekho

जो लोग बुद्धिमान है, वह यह जानते हैं कि शब्द हथियार की तरह होते हैं जिनसे किसी को भी बचाया जा सकता है या किसी को भी मारा जा सकता है। अब आप सोच रहे होंगे कि शब्दों से किसी को मारा कैसे जा सकता है? तो ज़रा सोचिये, ज्यादातर आत्महत्याओं के पीछे किसका कारण होता है? किसी के पति ने कुछ कहा, किसी के पिता ने कुछ कहा और उन लोगों ने आत्महत्या कर ली। ये आत्महत्या किसके कारण हुई? वो पीडित के मन को इतना दुखी कर गए।

की उसके मन से वो दुख सहना और ज्यादा बर्दाश्त करना नामुमकिन हो गया और इसी वजह से उन्होंने आत्महत्या कर ली। ऐसे ही आपके शब्द किसी को नया जीवन प्रदान कर सकते हैं। जब कोई आदमी उदास होता है या दुखी होता है तो आपके शब्द उसमें एक नया जोश, एक नया उत्साह भर सकते हैं और एक हारा हुआ आदमी अपने जीवन में एक नई शुरुआत कर सकता है। सिर्फ शब्दों के माध्यम से, हमारी वाणी के माध्यम से, तो अब तक आप ये तो समझ ही गए होंगे।

कि हमारे शब्द हमारे जीवन को किस तरह निर्धारित करते हैं, शब्दों में कितनी ताकत होती है और किसी से बात करते वक्त हमें कितनी सावधानी से अपने शब्द सुनने चाहिए।

आज की जो बौद्ध कहानी में आपको सुनाने वाला हूँ, उसमें आपको सीधे सीधे तौर पर कुछ ऐसे तरीके पता चलेंगे। कुछ ऐसी परिस्थितियां पता चलेगी जहाँ पे आपको हमेशा चुप रहना चाहिए। कुछ परिस्थितियों में अगर आप कुछ नहीं बोलेंगे तो वही आपके लिए सबसे ज्यादा बेहतर होगा। इससे पहले कि आप इस कहानी में खो जाए, इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लें। तो चलिए कहानी शुरू करते हैं।

एक बार की बात है। एक युवा लडका एक बार एक बौद्ध भिक्षु के पास पहुंचा। वो काफी परेशान लग रहा था और उसने बौद्ध भिक्षु से जाकर पूछा की हे महात्मा मैं अपने आप से परेशान हूँ, अपने आप से दुखी हूँ, बाहरी रूप से मुझे कोई दुख नहीं है। मैं धनधान्य संपन्न हूँ, मुझे कोई शारीरिक रोग भी नहीं है, लेकिन मैं खुद से परेशान रहता हूँ। अपने मन से परेशान रहता हूँ। अक्सर मेरी बातों को मेरा कोई भी दोस्त गंभीरता से नहीं लेता है।

और ना ही मेरे परिवार के लोग मेरी किसी बात को गंभीरता से लेते है। मैं जो कुछ भी सलाह देता हूँ या तो वह उसे मजाक में उडा देते हैं या फिर उसे गंभीरता से लेते ही नहीं है। मेरी बातों को कोई गंभीरता से क्यों नहीं लेता है? क्यों मेरी बातों पर कोई अमल नहीं करता? क्यों मेरी बातों में कोई रुचि नहीं दिखाता? क्या कारण है? कृपया मुझे बताने का कष्ट करे और मेरे मन के इस दुख को दूर करें। यह सुनकर बौद्ध भिक्षु ने कहा कि आज सुबह मैं चालित ध्यान करके वापस आ रहा था।

रास्ते में कुछ कौवे कांव कांव कर रहे थे और वहीं पर जब मैं चलता हुआ कुछ दूर आया तो मुझे एक मोर की मधुर आवाज सुनाई दी। ये सुनकर अचानक मेरे मन में ख्याल आया की कौवे कितना कांव कांव करते हैं, कितना बोलते रहते हैं? लेकिन कोई भी प्राणी कौए की आवाज को पसंद नहीं करता। मोर हमेशा सही परिस्थिति के हिसाब से बोलता है। जब भी बारिश होने वाली होती है और बादल गरजते है और बारिश होने की आशंका होती है, ऐसे में मोर अपनी मधुर आवाज में गाता है।

जो सभी को प्रिय होता है। सभी को अच्छा लगता है। ऐसे ही अगर इंसान सही परिस्थिति के हिसाब से सही शब्द बोले, सही वाणी बोले, तो वही वाणी दूसरों के लिए संगीत हो जाती है, संगीत बन जाती है और दूसरे लोग तुम से सम्मोहित हो जाते हैं और वहीं पर तुम्हें सब लोग गंभीरता से लेने लगते हैं और दूसरी तरफ अगर तुम यूं ही बेफिजूल ऐसे ही बोलते रहते हो, बिना किसी बात के बोले चले जाते हो, तो फिर तुम्हे कोई गंभीरता से नहीं लेता।

तुम उस कौवे की भांति हो जाते हों, जिसकी वाणी कोई पसंद नहीं करता और बाद में तुम्हें दुख होता है कि तुम्हें कोई गंभीरता से क्यों नहीं लेता? इसीलिए अपने शब्दों को बेहद बुद्धिमानी के साथ इस्तेमाल करना सीखो। अगर तुम नहीं सीखोगे तो समाज में तुम्हें कोई सम्मान या कोई गंभीरता से नहीं लेगा। यह सुनकर वो युवा लडका बोला कि हे महात्मा मैं जानता हूँ कि मैं ज्यादा बोलने की बिमारी से ग्रस्त हूँ। मुझे इतना नहीं बोलना चाहिए, लेकिन मैं अपने आप पे काबू नहीं रख पाता।

और ना ही मैं इतना बुद्धिमान हूँ कि मैं अपने शब्दों को नाप तोलकर बोल सकू। मैं तो किसी से बात करते वक्त इतना सोचता भी नहीं कि मुझे अपने शब्द किस तरह इस्तेमाल करने है। कृपया करके कुछ ऐसी परिस्थितियां बता दीजिए जहाँ पर मुझे कम बोलना है या फिर बोलना ही नहीं है। हमेशा चुप रहना है। अगर आप मेरा ऐसे मार्गदर्शन कर सकते हैं तो मेरा जीवन आसान हो जाएगा और मुझे ज्यादा दिमाग या अपनी बुद्धि लगाने की भी जरूरत नहीं पडेगी। यह सुनकर बौद्ध भिक्षु ने मुस्कुराते हुए कहा

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की बेटा? वैसे तो इंसान को हर परिस्थिति में सोच समझकर ही बोलना चाहिए लेकिन अगर वो हमेशा होश में नहीं रह पाता है, ध्यान में नहीं रह पाता है तो मैं तुम्हारे दैनिक जीवन की कुछ ऐसी परिस्थितियां बता रहा हूँ जहाँ पर तुम्हें हमेशा चुप रहना है। अगर तुम ऐसी जगहों पर कुछ बोलोगे तो तुम्हारा अपमान ही होगा या फिर तुम्हें कोई गंभीरता से नहीं लेगा। सबसे पहली जगह है या यूं कहे ऐसी परिस्थिति जहाँ पर इंसान को हमेशा चुप रहना चाहिए।

वो है जब किसी ऐसे विषय के बारे में बातचीत हो रही हो जिसके बारे में आपको कोई जानकारी ही नहीं है। तो ऐसी परिस्थिति में व्यर्थ में, बीच में टांग अडाना, अपना ज्ञान देना, व्यर्थ का ज्ञान, आपको कुछ पता नहीं है, लेकिन फिर भी आप अपना ज्ञान देने के लिए उत्सुक हैं तो ऐसी जगह पर आपका अपमान ही होगा।

ज़रा तुम खुद सोचो जब कोई बीमार आदमी अपनी बिमारी के बारे में चर्चा कर रहा हो और आपको उस बिमारी के बारे में कोई भी ज्ञान नहीं है लेकिन फिर भी आप व्यर्थ में, बेकार में उसे, ऐसी ऐसी औषधियाँ बता रहे हैं. जिनका उसकी बिमारी से कोई तालमेल ही नहीं है तो ऐसे में आप अपनी प्रतिष्ठा अपने हाथों से खो रहे होते हैं और आपको पता ही नहीं होता।

ऐसी परिस्थिति में आदमी को हमेशा सुनना चाहिए। ध्यान से सुनना भी एक कला होती है। अगर आप सुनने का दिखावा करेंगे तो कहीं ना कहीं सामने वाले आदमी को ये एहसास हो जाता है कि ये मेरी बात पूरे ध्यान से नहीं सुन रहा है। इसीलिए जब आपको किसी विषय के बारे में पूरी तरह से जानकारी ना हो तो वहाँ पर केवल अपने कान लगाना ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, ज्यादा जरूरी होता है।

आप उस इंसान की बातें ध्यान से सुन सकते हैं और इसी बीच आप दोनों के बीच एक संबंध पैदा होगा और उस संबंध सच्चा होगा. क्योंकि आपने उसके बात को बडे ही ध्यान से सुना है और इस बात का पता सामने वाले को भी होता है तो हम बिना कुछ बोले सिर्फ सुनने मात्र से किसी को अपना दोस्त है। अपना मित्र बना सकते हैं। इस बात को हमेशा ध्यान में रखना. दूसरी जगह जहाँ इंसान को हमेशा चुप रहना चाहिए वो है खाना खाते। वक्त खाना इंसान को हमेशा चुप रहकर खाना चाहिए।

मौन रहकर खाना चाहिए। महात्मा बुद्ध और उनके भिक्षु हमेशा चुप रहकर भोजन करते हैं, शांत भाव से भोजन करते हैं, परिपूर्ण होकर भोजन करते हैं, पूरी तरह से करते हैं, एक एक टुकडे का स्वाद लेकर भोजन करते हैं और ऐसा भोजन जब आपके शरीर में पहुंचता है तो वो आपके अंग अंग तक ऊर्जा पहुंचाता है। अक्सर हम भोजन करते वक्त कुछ ना कुछ बोलते रहते हैं, कुछ ना कुछ सुनते रहते हैं, लेकिन मौन रहकर पूरा स्वाद लेकर उस भोजन को कभी नहीं करते। हम उस भोजन को करते वक्त

आधे अधूरे ही रहते है और इसीलिए हमारा शरीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है। ज़रा तुम खुद सोचो बौद्ध भिक्षु हमेशा भिक्षा लेकर भोजन करता है और भिक्षा भी कितनी बिल्कुल मामूली सी और वो भी एक वक्त, तो एक वक्त भोजन करने के बाद भी वो इतने सवस्थ रहते थे। इतने उत्साह, जोश और आनंद से भरे होते थे और हम तो इतना खाना खाते हैं। इतनी सारी भोजन की सामग्री हमारे लिए उपलब्ध होती है, लेकिन हमारे शरीर में कोई ऊर्जा नहीं होती।

इसका सबसे बडा कारण होता है कि हम अपना भोजन होश में नहीं करते हैं, परिपूर्ण होकर नहीं करते हैं, मौन रहकर नहीं करते हैं। इसीलिए अपना भोजन हमेशा मौन रहकर ही करो। तीसरी जगह जहाँ पर अगर आपने चुप रहना सीख लिया तो इसका मतलब यह है कि आपने अपने ऊपर विजय हासिल कर ली। जी हाँ, गुस्से में शांत रहना या चुप रहना इतना आसान नहीं होता है। अक्सर हम गुस्से से भर कर कुछ ऐसे शब्द या अपशब्द बोल जाते हैं जिसका पछतावा हमें हमेशा रहता है

लेकिन जुबां से निकला हुआ शब्द वापस नहीं हो सकता। उस शब्द को मिटाया भी नहीं जा सकता। अब वो जिंदगीभर हमारे दामन से जुड चुका है और वो गुस्से में बोला गया अब शब्द हमारे मन को समय समय पर बेचैन करता रहता है, दुखी करता रहता है, लेकिन गुस्से के वक्त चुप रहना सीखना भी एक बहुत बडी कला होती है। गुस्से में आदमी का अपने ऊपर काबू कहाँ रहता है? अपनी इंद्रियों को वश में कहा रख पाता है।

इसीलिए इस कला को आप तभी सीख सकते हैं जब आप गुस्सा भी होश में रहकर कर पाए। जब भी आपको गुस्सा आए आपके दिमाग में सिर्फ एक ही बात आए कि मुझे चुप रहना है। मुझे किसी से कुछ गाली गलौच नहीं करना, किसी को कोई अपशब्द नहीं बोलना और जब ये विचार गुस्से के साथ जुड जाता है और धीरे धीरे ये आदत बन जाता है तो आप अपने गुस्से को भी काबू में करना सीख जाते हैं। जब भी कभी गुस्सा आए तो किसी को कुछ बोलने की बजाय कुछ शारीरिक व्यायाम करना शुरू कर दो।

उछलना, भागना, दौडना, जिम करना, कुछ भी आप ऐसा व्यायाम कर सकते हो जिसमे आपका शरीर थक जाए। आप पाएंगे कि जब आपका शरीर थक जाता है तो आपका मन भी शांत हो जाता है। आपने उस गुस्से की ऊर्जा को एक सकारात्मक रूप दे दिया और यही बुद्धिमान व्यक्ति की पहचान होती है जो दूसरों के तानों से भी अपना घर बना लेता है, अपनी कामयाबी के रास्ते निकाल लेता हैं। वही सच में बुद्धिमान आदमी है जो जहर को भी दवा बनाकर इस्तेमाल करना सीख जाए।

वही असली बुद्धिमान होता है। चौथी जगह जहाँ आप चुप रहेंगे तो आपके लिए वही सबसे ज्यादा बेहतर होगा, वही आपको सम्मान दिलाएगा। चौथी जगह है जब चार लोग आपस में बैठकर बातें कर रहे हो। कोई बैठक कर रहे हो, तो वहाँ पर जब चार लोग बात कर रहे होते हैं तो चारों लोग एक साथ तो बात कर नहीं सकते। एक बार में एक व्यक्ति बोलेगा और तीन सुनेंगे तभी वो बैठक कामयाब हो पाएगी तभी वो चर्चा सही रूप में आगे बढ पाएगी।

लेकिन अगर कोई आदमी ऐसा बैठा हुआ है जो बीच में ही दूसरे की बात काटकर अपनी बात को ऊपर रखना चाहता है तो ऐसे में वो चर्चा या वो बैठक आपको कहीं नहीं पहुंचाएगी और चारों लोगों के बीच आप सबसे मूर्ख कहलाओगे। अगर आपको अपनी बात कहनी है तो सामने वाले को अपनी बात पूरा करने दो। उसके बाद अपने विचार रखो। यही एक भद्रपुरुष या फिर कहीं अच्छे आदमी की पहचान होती है और आखिरी जगह अगर हमारे माता पिता हमें कुछ कह देते हैं

हमारे बडे बुजुर्ग हमें किसी बात पर डांट देते हैं या हमें थप्पड भी मार देते हैं तो ऐसी जगहों पे आपका चुप रहना ही उनके प्रति सम्मान दिखाएगा, उनके प्रति आदर का भाव व्यक्त होगा। अगर आप उनके सामने उनका विरोध कर देते हैं, उनका प्रतिरोध कर देते हैं तो वो गुस्सा तो थोडी देर बाद शांत हो जाएगा लेकिन वो कही गई बात, वो विरोध किया हुआ शब्द या फिर कुछ भी उल्टा सीधा हमेशा आपके मन को सताएगा और आपके माता पिता को हमेशा यही लगेगा की आज ये हमारी इज्जत नहीं करता।

अपने डर को ताकत में बदलो | A Motivational Buddhist Story On Life

आज ही हमारी बात नहीं मानता क्योंकि ये कमाने लग गया है। ये बडा आदमी बन गया है ऐसी ऐसी बातें उठेंगी ऐसे ऐसे तंज कसे जाएंगे? इसीलिए ऐसी जगह पे आप मौन रही है। चुप रहिए, कुछ मत बोलिए अपने गुस्से को अपने अंदर ही पी ली जिए। कुछ व्यायाम कर लीजिये, भाग लीजिए, दौड लीजिये, आपका मन अपने आप शांत हो जाएगा। आखिर में बौद्ध भिक्षु ने अपनी बात को खत्म करते हुए कहा कि कम शब्दों में अपनी भावनाओं को उतारना सीखो।

शब्द हथियार की तरह होते हैं। बोलो तो होश में बोलो, ध्यान में बोलो जीवनशैली ऐसी बना लो कि आप जब भी बोलो, पूरे होश में रहकर बोलो, पूरे आनंद के साथ बोलो, पूरे प्रेम के साथ बोलो, ऐसी वाणी बोलो जो दूसरे के दिल को ठंडक पहुंचाती हो, दूसरे के मन को भी शांत कर देती हो और वो तभी संभव है जब आप प्रतिपल होश में रहकर बोले। इसके बाद वो युवा लडका बौद्ध भिक्षु के सामने नतमस्तक हो गया और उनको प्रणाम करते हुए अपने घर वापस लौट गया।

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