मन के गंदे विचार खत्म हो जाएंगे | Buddhist Story On Lust | Story Of Buddha And Sirima

हमारे मन में गंदे विचार क्यों आते हैं, हम नहीं चाहते, लेकिन फिर भी हमारे मन में गंदे विचार आते रहते हैं, लेकिन मन हमारा सबसे बड़ा दोस्त और मन ही सबसे बड़ा दुश्मन क्यों है, जब हम अपने मन की बात मानते हैं तो हमारा मन ही हमारा नेतृत्व करता है भटक जाते हैं और जब हम मन को संतुलित कर लेते हैं तो हम अपने जीवन में हर चीज का ध्यान रखते हैं.

हम अपने मन में आने वाले गंदे विचारों को रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन जितना अधिक हम रोकते हैं उतना ही ये विचार हमारे अंदर प्रवेश करते हैं जितना अधिक आप किसी चीज से दूर भागते हैं वह चीज आपको अपने पास ले जाएगी इसलिए उस चीज से दूर मत भागिए उस पर संतुलन बनाए रखिए।

एक बार एक युवक गौतम बुद्ध के पास आया और गौतम बुद्ध से बोला की ही बुद्ध मेरे मन में इतने गंदे विचार क्यों आते हैं मैं नहीं चाहता की मेरे मन में गंदे विचार आए पर मेरे मन में हमेशा कामवासना के विचार चलते रहते हैं और मैं इनके के बारे में सोच सोच कर बहुत परेशान हूं मेरी ऊर्जा और समय यह सब सोचने में ही नष्ट हो जाता है और इन सबके विचारों की वजह से मैं कभी भी शांत नहीं रह पता.

और मैं हमेशा ही स्त्रियों को देख कर मोहित हो जाता हूं अपने आप को रोक ही नहीं पता बुद्ध मुस्कुराए और उन्होंने उसे युवक से पूछा क्या तुम्हें पता है यह कामवासना होती क्या है फिर लड़के ने उत्तर दिया और कहा बुद्ध में यह तो नहीं जानता की कामवासना होती क्या है पर हां ये जो भी है बहुत बुरी चीज है फिर बुद्ध ने उसे युवक से कहा की सबसे पहले तो तुम यह समझना है की प्राकृतिक रूप से जो भी चीज हमारे अंदर है वह बुरी नहीं है।

हमारे जीवन में उसकी कुछ ना कुछ जरूरत है वासना कोई बुरी बात नहीं है यह तो हमारे मन की एक भावना है जो हमें किसी ना किसी चीज की कमी का एहसास करवाती है और फिर हम उसे चीज को पाने के लिए उसे चीज की तरफ आकर्षित हो जाते हैं जैसे अगर तुम्हारे पास धन की कमी है तो तुम में धन पाने की वासना उत्पन्न हो जाएगी.

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तो वासना कुछ और नहीं बस एक प्रकार की कमी है जो की एक प्रकार की जरूरत का एहसास है और जब ये जरूरत शारीरिक हो तो हम इसे कामवासना कह देते हैं युवक ने गौतम बुद्ध को कहा की बुद्ध मुझे कामवासना का मतलब तो समझ में आ गया पर आप मुझे यह बताइए की यह आती कहां से है और कैसे आती है.

यह गौतम बुद्ध ने कहा की कामवासना कहीं से आती नहीं है यह तो हमारे अंदर ही होती है और इसका होना तो जरूरी भी है तभी तो मानव जाती का विस्तार होगा युवक ने कहा जब यह हमारे अंदर ही है और जरूरी भी है तो फिर लोग इसे गलत क्यों बोलते हैं बुद्ध ने कहा की यही तो समस्या है लोगों ने कामवासना को गलत तरीके से सोच लिया है.

इसे छिपाने की दबाने की कोशिश करते हैं कामवासना गलत नहीं है बल्कि कामवासना का गलत तरीके से प्रयोग करना गलत बात है लोग जिससे प्रेम करते हैं बस उसी के लिए जीने लग जाते हैं उसे पाना ही अपना लक्ष्य बना लेते हैं और उसी के बारे में हमेशा सोचते रहते हैं पर यह सब गलत है बुद्ध ने युवक से कहा क्या तुम्हें पता है जानवरों में भी कम वासना होती है.

युवक ने उत्तर दिया हाँ बुद्ध जानवरों में भी कामवासना होती है क्योंकि जानवर भी तो आखिर अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाएंगे. बुद्ध ने कहा तो फिर हम जानवरों की कामवासना को गलत क्यों नहीं कहते युवक ने कहा मुझे नहीं पता महात्मा आप ही मुझे बताइए. गौतम बुद्ध ने कहा की जानवर अपनी कामवासना का प्रयोग आनंद प्राप्ति के लिए नहीं करते.

वह तो सिर्फ संतान उत्पन्न करने के लिए कामवासना का उपयोग करते हैं. जानवरों को प्रकृति ने इतनी समझ नहीं दी की वह कामवासना को अपने सुख का आधार बना सके. जबकि मनुष्य अपनी समझ के बलबूते पर प्रकृति में पाई जाने वाली प्रत्येक वस्तु को अपने सुख के लिए अपने प्रयोग करता है.

हम इंसानों ने ही कामवासना को अपने सुख का साधन बना लिया है जबकि प्रकृति ने तो हमें अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए दिया था. लेकिन इंसानों ने इसे अपने जीवन का परम लक्ष्य बना रखा है और इस तरह से कामवासना का बेलगाम हो जाना गलत है. युवक ने पूछा महात्मा जी ये कम वासना हम पर हावी क्यों होती है क्यों यह बेलगाम हो जाती है.

तब गौतम बुद्ध ने कहा की सुनो अब जो मैं तुम्हें बताऊंगा उसे तुम ध्यानपूर्वक सुनना कामवासना का सारा खेल तुम्हें समझ आ जाएगा. तुम्हें तुम्हारे सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा, बस तुम्हें ध्यान से सुनकर समझना है फिर गौतम बुद्ध युवक को बताना शुरू करते हैं एक बार की बात है एक आश्रम में गुरु और उनके शिष्य रहा करते थे. जिससे रोजाना आश्रम के बाहर स्थित गांव में भिक्षा लेने के लिए जाते थे उसे आश्रम का एक शिष्य जिस गांव में भिक्षा लेने जाता था. उसे रास्ते में एक नदी पद्धति थी जिससे रोज उसी रास्ते से भिक्षा लेने जाता था।

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एक दिन उससे ने देखा की एक लड़का पेड़ के पीछे छिपा है वह उस लड़के के पास गया और उससे जाकर बोला भाई तुम इस पेड़ के पीछे छिपकर क्या देख रहे हो. लड़के ने कहा अरे तुझे नहीं दिख रहा क्या की मैं क्या देख रहा हूं तब शिष्य ने नदी की तरफ देखा तो वहां पर कुछ लड़कियां पानी भर रही थी. वो लड़कियां 14-15 साल की होगी तब शिष्य ने उसे लड़के से कहा अरे भाई वहां पर तो लड़कियां पानी भर रही है.

इसमें छिपकर देखने वाली क्या बात है तब वो लड़का शिष्य की तरफ देख कर उससे कहता है अरे पागल तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा. यह परी कैसे नदी से पानी ला रही है, जरा उनकी अदाओं को तो देखो, उनके कोमल शरीर को देखो, उनकी पतली कमर मटके को उठाते समय बल खाती है और उनके बाल उनकी कमर पर कैसे लहरा रहे हैं मानो सुंदरता बिखरी पड़ी हो. उसने फिर से नदी के किनारे देखा और इस बार वह नदी के किनारे देखता रहा.

अब कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था और वह बिल्कुल निडर था, उसे किसी भी चीज का कोई डर नहीं था, लेकिन अब वो छिपने लगा और उन लड़कियों को देखने लगा जैसे उसने कोई अपराध कर दिया हो और जब वो छिपकर उन लड़कियों को देख रहा था तभी वो अचानक अंदर से कॉप गया और उसने कहा की ये मैं क्या कर रहा हूं मैं जो कर रहा हूं वो सही नहीं है मुझे यहां से चले जाना चाहिए और फिर वह जल्दी से वहां से चला गया वो आश्रम पहुंच जाता है आश्रम जाकर वो अपने कार्यों में लग गया.

लेकिन जो अभी वह देखकर आया था, वही उसकी आंखों के सामने बार-बार आ रहा था, उसके मन में वही दृश्य चल रहा था, उसका दिमाग सब कुछ देखने के लिए संघर्ष कर रहा था, उसका किसी भी कम में मन नहीं लग रहा था. सुबह होते ही वह रोज जल्दी ही भिक्षा के लिए आश्रम से निकल जाता और उस नदी के पास वाले पेड़ के पास जाता. जहां पर वह लड़का पहले से मौजूद रहता था उसके साथ मिलकर लड़कियों को छुप छुप कर देखता था.

अब वह ऐसा रोज करने लग गया यह उसके रोज का काम हो गया. अब उस शिष्य का मन किसी भी कम में नहीं लगता था, वो हमेशा ही किसी ना किसी प्रकार के विचार में उलझा रहता. वो आश्रम के कार्यों को भी ठीक ढंग से नहीं कर का रहा था ना वो ठीक से सो पता था, ना वो ठीक से खाना खा पता था, उसका मन बेचैन सा रहता था.

उसका मन बार-बार उन लड़कियों की खूबसूरती देखने को मचलता था। जब गुरु भिक्षा दे रहे थे तब भी उनका मन किन्हीं अन्य विचारों में खोया हुआ था। गुरु ने अपने शिष्य की इन हरकतों को भांप लिया था. फिर एक दिन गुरु ने शिष्य को अपने पास बुलाया और कहा कि आज से मैं भी तुम्हारे साथ भिक्षा मांगने चलूंगा। आप और मैं एक साथ भिक्षा मांगने जायेंगे, तभी शिष्य गुरु को माना करते हुए बोला नहीं गुरुदेव आप परेशान क्यों हो रहे हो, मैं अकेला ही ठीक से भिक्षा मांग सकता हूं।

गुरु ने शिष्य से कहा कि ठीक है तुम अकेले ही भिक्षा मांगने जाओ, जिससे वह तुरंत भिक्षा मांगने निकल पड़ा। सभी लोग उसे देखने के लिए उसके पीछे-पीछे चलने लगे। थोड़ी दूर जाने पर गुरु ने देखा कि उनका शिष्य एक अपराधी की तरह एक लड़के के साथ पेड़ के पीछे छिपा हुआ है और छिपकर कुछ देख रहा है। गुरु भी अपने शिष्य के पीछे जाकर खड़े हो गये।

उसका शिष्य क्या देख रहा है, जिसे देखने के लिए वह एक अपराधी की तरह पेड़ के पीछे छिपा हुआ है, गुरु ने देखा कि उसका शिष्य पेड़ के पीछे छिपकर नदी से पानी ले रही लड़कियों को देख रहा है, तब गुरु ने शिष्य से कहा क्या देख रहे हो, अपने मालिक की आवाज सुनकर वह डर गया और उसके पसीने छूटने लगे, वह ऐसे कांपने लगा जैसे उसने किसी चोर को चोरी करते समय पकड़ लिया हो।

उसी से की हालत खराब हो गई वो कुछ भी नहीं बोल का रहा था दूसरा का जो शिष्य के साथ था वहां से भाग गया. उसके मुंह से कुछ टूटे-फूटे शब्द ही बाहर निकल रहे थे वो अपने गुरु से नजर भी नहीं मिला का रहा था. गुरु ने शिष्य की तरफ देखा और कहा की मेरा शिष्य तो निर्भय था उसे तो किसी भी चीज का डर नहीं था. लेकिन ये क्या, तुम तो भय के मारे कांप रहे हो.

शिष्य ने गुरु से कहा की मुझे माफ कर दो गुरुदेव, मेरा इसमें कोई दोष नहीं है उस लड़के ने मुझे बहका दिया था. लेकिन आपसे मैं वादा करता हूं की आज के बाद मैं ऐसा कभी दोबारा नहीं करूंगा, मुझे माफ कर दो गुरुदेव गुरु ने शिष्य से कहा की कोई बात नहीं पर इस बात का तुम ध्यान रखना की हम जैसी संगति करते हैं वैसा ही फल हमें प्राप्त होता है.

हम जैसी संगति करते हैं उसके विचार हमारे अंदर प्रवेश करते हैं इसीलिए अच्छी संगति करो. जिससे तुम्हारे अंदर अच्छे विचारों का प्रवेश हो, फिर गुरु और शिष्य आश्रम लौट आए और फिर से शिष्य आश्रम के कार्यों पर ध्यान देने लगा. उसने उस रास्ते को छोड़ दिया और दूसरे रास्ते से जाने लगा वो अपने कम को ध्यान से करता.

लेकिन धीरे-धीरे उसके अंदर क्रोध उत्पन्न हो गया और फिर वो दूसरे शिष्यों पर क्रोध करने लगा और बेचैन रहने लग गया. अब वो सही समय पर भोजन भी नहीं करता था, वो भोजन भी बहुत कम खाता था, एक रात गुरु शिष्य के पास आए और उसे बोले की अब तक तुमने कितनी बार अपना वादा तोड़ दिया यह सुनकर शिष्य अपने गुरु के चरणों में गिर गया और रोने लगा रोते-रोते ही उसने गुरु से कहा की गुरुदेव मैं कई बार अपना वादा तोड चुका हूं.

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फिर मैं वादा करता हूं लेकिन हर बार जब मैं वादा तोड़ देता हूं तो मेरा मन मेरे वश में नहीं रहता, मैं बहुत कोशिश करता हूं कि अपने मन से सारे बुरे विचार निकाल दूं, लेकिन चाहकर भी मैं ऐसा नहीं कर पाता। फिर गुरु ने शिष्य को कहा की चलो मेरे साथ गुरु शिष्य को आश्रम के बगीचे में लेकर गए और शिष्य से कहा की देखो यहां पर कुछ नाली बनी हुई है जिससे नदी का पानी इन पौधों तक आ रहा है और यह पानी निरंतर गति से आगे बढ़ रहा है क्या तुम इस पानी के बहाव को रोक सकते हो.

शिष्य ने कहा की हाँ गुरुदेव मैं इस बहाव को रोक सकता हूं, फिर शिष्य ने मिट्टी उठाकर उस नाली में रख दी. तो पानी थोड़ी देर के लिए रुक गया और फिर थोड़ी देर बाद उस मिट्टी के ऊपर से पानी बहने लगा. गुरु ने शिष्य से कहा अरे ये क्या, ये तो पानी रुका ही नहीं, फिर से शिष्य ने कुछ कंकर पत्थर उठाकर उसे नाली में रख दिए और फिर थोड़ी देर के लिए पानी रुक गया.

लेकिन फिर थोड़ी देर बाद ही उन कंकड़ पत्थर के ऊपर से पानी निकल आया. फिर गुरु ने कहा की शिष्य यह क्या हुआ पानी तो फिर से बहने लग गया. तुम तो बोल रहे थे की तुम इसे रोक दोगे, क्या हम किसी कम को रोकना चाहे तो क्या हम उसे रोक नहीं सकते. तब शिष्य ने कहा कोई बात नहीं गुरुदेव मैं इस पानी को तो आपको रोक के दिखाऊंगा. शिष्य फिर से एक बड़ा सा पत्थर लेकर आया और उसे नाली पर रख दिया और पानी रुक गया. तब गुरु से कहा की देखा गुरुदेव मैंने कहा था ना की पानी को मैं रोक दूंगा, मैंने पानी को रोक दिखाया आपकी बात मैंने पुरी कर दी।

गुरु मुस्कुराए और बोले अच्छा जरा ध्यान से देखो पानी रुक गया क्या, वो तो पीछे की नाली तोड़कर बाहर निकल गया और अगल-बगल से बह रहा है. और ध्यान से देखो इस पत्थर की आगे भी आ गया और ये पानी अपना रास्ता बदलकर फिर से आगे की तरफ जाएगा और फिर थोड़ी देर बाद ऐसा ही हुआ. फिर गुरु ने शिष्य को समझाया की तुम्हारे साथ भी तो ऐसा ही चल रहा है तुम बार-बार प्रयास कर रहे हो, बड़े से बड़ा प्रयास कर रहे हो, पर हर बार तुम्हारा प्रयास टूट रहा है।

और यह हमेशा टूटता ही रहेगा तुम कितना भी बड़ा पत्थर रख लो लेकिन पानी तो अपना रास्ता बना ही लेगा. यह सब देखकर शिष्य ने गुरु से कहा की ही गुरुदेव क्या कोई तरीका नहीं है जिससे मैं गंदे विचारों से बाहर निकल सकूं और यह मेरे मन में आए ही ना. गुरु शिष्य को एक नदी के पास ले गए जहां से उसे बगीचे में पानी जा रहा था. गुरु ने शिष्य से कहा वो पानी इसी नदी से जा रहा है अगर हम यहीं से उसे रास्ते को बंद कर दें, जहां से पानी बगीचे में जा रहा है तब क्या हम पानी को रोक नहीं सकते. शिष्य ने कहा की हां गुरुदेव अवश्य ऐसा हो सकता है.

मैं इस पानी को यहीं से बंद कर देता हूं तब आगे की नाली में पानी जाएगा ही नहीं और फिर बगीचे में पानी जाएगा ही नहीं, फिर शिष्य नदी से जाने वाले रास्ते को बहुत मेहनत करके पत्थर और मिट्टी डालकर बंद कर दिया और गुरु से कहा की गुरुदेव मैंने पानी को बंद कर दिया है, अब यह पानी बगीचे में जाएगा ही नहीं. तब गुरु ने कहा शिष्य से अगर पानी बगीचे में नहीं जाएगा तो पेड़ पौधों को पानी कहां से मिलेगा उन पेड़ पौधों को तो पानी की आवश्यकता है और उन पेड़ पौधों में कुछ पेड़ पौधे तो ऐसे हैं जिनको रोज पानी की आवश्यकता है।

वह तो मुरझाकर मर ही जाएंगे, उनका क्या होगा पानी तो हमें खोलना ही होगा. शिष्य ने गुरु की बात सुनकर वापस नदी से जाने वाले पानी का रास्ता खोल दिया तब गुरु ने शिष्य से पूछा शिष्य अगर हम इस नदी के पूरे पानी को बगीचे की तरफ मोड दे तो क्या होगा. तब शिष्य ने जवाब दिया की गुरुदेव वहां पर जितने भी पेड़ पौधे हैं, वो गल कर नष्ट हो जाएंगे वहां पर कुछ नहीं बचेगा.

फिर गुरु मुस्कुराए और बोले तुम इस बात को समझो की हमें किसी भी चीज को रोकना नहीं है बस हमें हमेशा संतुलन बनाए रखना है कम पानी से भी पौधे नष्ट होते हैं और ज्यादा पानी से भी पौधे नष्ट होते हैं. हमारा जीवन संतुलन से ही चलता है गुरु ने शिष्य से कहा की अगर मैं तुम्हें कुछ कहूं की तुम आम के बारे में मत सोचो तो तुम्हारे मन में सबसे पहले किसका चित्र आएगा. शिष्य ने कहा की गुरुदेव मेरे मन में तो पहला चित्र आम का ही आएगा.

गुरु ने कहा की जब हम गंदे विचारों को जबरदस्ती रोकने का प्रयास करते हैं, तो वह और मजबूती के साथ हमारे अंदर प्रवेश करते हैं हमारे अंदर उठाते हैं, इसीलिए हमें उन्हें कभी भी दबाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. तब गुरु शिष्य के पास गए और बोले कि बुरे लोगों की संगति के कारण भी हमारे अंदर गंदे विचार आते हैं, कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारे अंदर कामुकता नहीं होती, लेकिन कुछ अश्लील लोगों के साथ रहने के कारण वह हम पर हावी हो जाती है।

तब शिष्य ने कहा कि गुरुदेव आप सही कह रहे हैं, मैं अपने लक्ष्य से भटक गया था, तब वह शिष्य रात को बहुत शांति से सोया, सुबह पूरे मन से अपना काम किया और फिर सुबह वही भिक्षा लेने चला गया। जहां वह लड़का आज भी पेड़ के पीछे छुपकर उन लड़कियों को देख रहा था।

वो शिष्य नदी पर गया जहां वह लड़कियां पानी भर रही थी. उसने उन लड़कियों से पानी मंगा उन लड़कियों में से एक लड़की ने उसे पानी पिलाया और उसे सन्यासी शिष्य के चरण छुए शिष्य ने उसे आशीर्वाद दिया की तुम्हारा कल्याण हो, शिष्य का मन सकारात्मक ऊर्जा से भर गया उसके चेहरे पर मुस्कान ए गई थी.

जैसे उसे कोई खोई हुई चीज वापस मिल गई हो, वह अपने रास्ते पर वापस जाने लगा, तभी पीछे से वह लड़का आया जो पेड़ के पीछे छिपा था, वह शिष्य के पास आया और बोला कि क्या बात है, आज तुमने करीब से देखा है। आप तो मुझसे आगे निकल गए, तब शिष्य ने कहा की हम हमेशा दूसरे के दर्शन करने में ही व्यस्त रहते हैं.

अपने दर्शन कर ही नहीं पाते, तुम कब तक इस पेड़ के पीछे छुपाते रहोगे, किसी को पसंद कर लो, उससे बोल दो अगर वो भी तुम्हें पसंद करती है, तो शादी कर लो और उससे पहले तुम कुछ बन जाओ, अपने आप को पहचान लो, ऐसे अपना समय बर्बाद मत करो, फिर वह लड़का रोज उससे मिलने लगा और उसे लड़के ने नदी पर जाना छोड़ दिया।

और फिर वो लड़का अपने जीवन में कुछ बनने के लिए संघर्ष करने लगा. तो तुमने देखा संगति का असर क्या होता है अपनी संगति बदलो अपने विचार बदलो बुद्ध ने युवक से पूछा की क्या तुम्हें तुम्हारे सारे सवालों का जवाब मिल गया. तब युवक ने कहा की हां महात्मा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद तब गौतम बुद्ध ने युवक से कहा की जब तुम्हारे मन में गंदे विचार आए तब आप अपने आप को दोषी मत मानो.

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यह शरीर है और यह सब हजारों वर्षों से सिखाया गया है, एक केवल तुम्हारे सोच लेने से, शपथ लेने से, ये टूटने वाला है नहीं, लेकिन तुम्हारे पास वो शक्ति है, वो ऊर्जा है, जिसका तुम्हें संतुलन उपयोग करना है तुम एक जीवित ऊर्जा हो, जो कुछ भी अनुभव करने के लिए स्वतंत्र है, जो निर्माण करने के लिए स्वतंत्र है, इसीलिए तुम अपने आप को पहचानो यह बोलकर गौतम बुद्ध मौन हो गए और वो युवक वहां से चला गया.

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