दिमाग़ की शक्ति वापस पाओ- गौतम बुद्ध | Buddha Life Story in Hindi

Buddha life story in hindi: दोस्तों, अक्सर हमारा दिमाग विचारों से भरा रहता है, हम लोगों के बारे में, अपने बारे में, अपने काम के बारे में, परिवार के बारे में और वो सब सोचते रहते हैं जो हमारे दिमाग में भरा रहता है। वह कभी भी साफ नहीं होता है और इसीलिए हमें वह सब बार-बार याद आता है और हम दुखी और चिंतित रहते हैं लेकिन इस कहानी से आप अपने मन को अच्छी तरह से साफ कर पाएंगे। आप अपने मन की धुलाई खुद कर सकते हैं, बस इस कहानी को पूरा पढ़ें।

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एक बार एक गुरु और शिष्य एक सुनसान जंगल से गुजर रहे थे। तभी शिष्य अपने गुरु से एक सवाल करता है। गुरु जी, ऐसा क्या होता है कुछ लोगों के पास, कुछ भी नहीं होता, लेकिन फिर भी वो सुखी रहते हैं, आनंद में रहते हैं और कुछ लोगों के पास सबकुछ होते हुए भी, उदासी उनके चेहरे से साफ दिखाई देती है। गुरु ने एक मुरझाए हुए फूल की तरफ इशारा करते हुए अपने शिष्य से कहा कि ये सोचने की और समझने की बात होती है। अगर ये फूल ये सोचेगा की मैं कल मुरझा गया था।

या फिर ये सोचेगा की मैं भविष्य में फिर से मुरझा जाऊंगा तो ये कभी भी खुलकर पूरे तरीके से खिल नहीं पाएगा। अपने सुंदर स्वरूप में यह कभी भी आ नहीं पाएगा और अपनी खुशबू से इस प्रकृति में बिखेर नहीं पाएगा। उसी प्रकार इंसान अपने अतीत की यादों में खोया रहता है या फिर अपनी भविष्य की कल्पनाएं करता रहता है, भविष्य के दुखों के बारे में सोचता रहता है या भूतकाल में, जो उसके साथ बुरा घटित हुआ है। उसके बारे में सोच सोच कर वो अपने भविष्य के लिए चिंतित होता रहता है।

तो ऐसा मनुष्य जीवन में कभी भी सुख अनुभव नहीं कर सकता। यह समझने की बात होती है कि जीवन हमेशा वर्तमान में होता है। अतीत और भविष्य की कल्पनाएं हमेशा मनुष्य को मृत्यु की तरफ लेकर जाती है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि जिस प्रकार हम अपने शरीर की देखभाल करते हैं, उसे बीमारियों से दूर रखने के लिए। उसकी अंदर से गंदगी भी साफ करते रहते हैं। उसी प्रकार समय समय पर हमें अपने मन और मस्तिष्क की भी गंदगी साफ करते रहना चाहिए, उसकी धुलाई करते रहना चाहिए।

इससे आपकी बुद्धि की क्षमता तो तेज होगी ही होगी, साथ ही साथ आप हमेशा आनंद में रहने का रहस्य जान पाओगे। शिष्य ने सवाल किया कि गुरुदेव, इससे पहले कि हम मन और मस्तिष्क पर चर्चा शुरू करें। इससे पहले मैं ये जानना चाहता हूँ कि जिन लोगों के पास सब कुछ होता है वो दुखी क्यों रहते हैं और जिन लोगों के पास कुछ भी नहीं होता अक्सर वो आनंद में क्यों होते हैं। ये रहस्य क्या है? इसके पीछे क्या कारण हो सकता है?

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गुरु ने उत्तर दिया की कुछ लोग जीवन में सब कुछ हासिल कर लेते हैं और सब कुछ हासिल कर लेने के बाद उन्हें सब चीजों की व्यर्थता पता चल जाती है। ऐसे लोगों को अक्सर ये एहसास जकड लेता है कि मैंने जीवन में जो कुछ भी पाया, जो कुछ भी किया, उससे भले ही मैंने सुख सुविधाएं हासिल कर ली हो, लेकिन मन की शांति अभी भी बहुत दूर है, अधूरी है, उस तक में पहुँच नहीं पाया।

सब कुछ पाकर भी मैं अपने मन को जान नहीं पाया और जब इंसान को ऐसा लगता है तो उसे महसूस होता है कि जो भी उसने कमाया वो कौडियों के भाव का था। उसने अपना जीवन बेकार की चीजों में यूं ही व्यर्थ कर दिया और वहीं पर जिस इंसान के पास जीवन में कुछ भी नहीं होता है। उसके पास एक उम्मीद होती है। उस सब कुछ पाने की लालसा रखता है और वही लालसा, वही इच्छा उसको जीवन में खुश रखती है, आगे बढाती है, ऊर्जा से भरा हुआ रखती है। गुरु ने अपने हाथ से एक सूखे पेड की तरफ इशारा करते हुए कहा

की शिष्य, कभी तो यह पेड भी हरा भरा रहा होगा, फलों से लदा हुआ रहा होगा। अनेक प्रकार के पक्षी और जानवर इस पर कीडाये करते होंगे, इसके फलों को खाते होंगे। उस समय इस पेड को भी यह पता नहीं होगा कि एक दिन तुम सुख जाओगे और तुम्हारी हालत इतनी बदतर हो जाएगी कि तुम किसी को छांव तक नहीं दे पाओगे। तुम्हारे ऊपर पत्ते तक नहीं रह जाएंगे। फल तो दूर की बात रही।

उसी प्रकार मनुष्य अपने जीवन की दौड में यह भूल जाता है कि जिस दौड में वह सबसे आगे निकलने की कोशिश कर रहा है। उसका अंतिम चरण तो मृत्यु ही है। काश वो कभी इस दौड से अलग हटकर ये देख पाए कि इसका अंतिम चरण तुम्हें कहीं नहीं पहुंचाएगा कि जिस दौर को वो सबसे आगे निकलकर जीतने के ख्वाब देख रहा है। उसका अंतिम चरण मृत्यु ही है। काश वो कभी जीवन की दौड में ठहरकर ये देख पाए।

किसका अंतिम चरण क्या होगा तो वो उन कामों को तेज आंजलि दे सकता है जो व्यर्थ है, जो बेकार है और ऐसे कार्यों की तरफ आगे बढ सकता है जो उसके जीवन में आनंद पैदा करते हो, जो उसके जीवन को एक नई दिशा देते हो। गुरु ने खुद की तरफ इशारा करते हुए समझाया कि एक योगी वो होता है जो जीवन की दौड में ठहर जाता है, जो ये समझ लेता है कि जीवन का अंतिम चरण तो मृत्यु ही है। इसलिए वो जीवन में सुख सुविधाएं हासिल करने की बजाय खुद के मन और मस्तिष्क को एक नए आनंद की तरफ ले जाने का प्रयास करना शुरू कर देता है।

शिष्य ने सवाल किया कि गुरुदेव क्या एक ग्रस्त जीवन में जीने वाला मनुष्य उस आनंद की प्राप्ति नहीं कर सकता और अगर कर सकता है तो उसे किस प्रकार शुरुआत करनी चाहिए? बिलकुल कर सकता है। गुरुदेव ने उत्तेजित होकर उत्तर दिया। अगर सभी मनुष्य उस आनंद की प्राप्ति के लिए योगी बनने का निश्चय कर लें तो इससे तो प्रकृति का चलन ही रुक जाएगा। उसकी जो व्यवस्था है वो बिगडने लगे गी।

एक सच्चा योगी अपने जीवन में खोज करता है और खोज करने के बाद वो ग्रस्त जीवन में किस प्रकार आनंद को प्राप्त किया जा सकता है। वो तरीके सभी को बताता है ताकि मनुष्य अपने ग्रस्त जीवन का पालन करते हुए उस आनंद की प्राप्ति भी कर सके। गुरु ने खुद को संबोधित करते हुए उत्तर दिया कि मैंने अपने जीवन में जो खोज की है, उसके अनुसार मनुष्य को समय समय पर अपने मन और मस्तिष्क की सफाई करते रहना चाहिए।

मनुष्य अपने शरीर पर तो ध्यान दें लेता है लेकिन अपने मन और मस्तिष्क को वो भूल जाता है। उस पर कभी ध्यान नहीं देता और उसी वजह से मन और मस्तिष्क बूढे होते चले जाते हैं। उनमें जवानी नहीं रह जाती और जब उनमें जवानी नहीं रह जाती तो उनमें नयापन और ताजगी नहीं रह जाती, जिसकी वजह से एक इंसान उदासी से भर जाता है।

मन और मस्तिष्क की गंदगी क्या होती है? पहले मैं तुम्हें ये बताता हूँ। हर मनुष्य के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं जिनका उसके मनोमस्तिष्क पर बहुत गहरा असर पडता है। वो जीवन पर्यंत उन घटनाओं को भुला नहीं पाता है और वही घटनाएं उसके मन में पूरी तरह से पक्की बैठ जाती है जो उसके मन में गांठ पैदा कर देती है और भविष्य में जब भी वो कोई काम करेगा तो ये घटनाएं उस को प्रभावित करेंगी।

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उसके विचारों को उसके निर्णय को पूरी तरह से बदल कर रख देंगी। ऐसे मनुष्य की दृष्टि भी भ्रमित हो जाती है। वो सत्य स्वरूप को नहीं देख पाता। वो चीजों को उन घटनाओं से जोडकर भ्रमित तरीके से देखता है। उदाहरण के लिए अगर किसी बुरी आंखोंवाले आदमी ने आपको धोखा दे दिया तो अब जीवन प्रयन्त बुरी आंखोंवाले आदमी को हमेशा धोखेबाज समझते रहेंगे, उस पर कभी पूर्ण रूप से विश्वास नहीं कर पाएंगे।

लेकिन समझने की बात ये होती है कि जिंस इंसान ने आपको धोखा दिया। वो धोखा आपको बुरी आँखों से नहीं मिला। वो उस इंसान के स्वभाव से मिला लेकिन उस इंसान के स्वभाव से हमारे दिमाग में उसका एक चित्र छप गया। उसकी एक छवि बन गई और वो छवि दूसरे आदमी से। जब हम संपर्क करते हैं तो बीच में एक दीवार की तरह खडी हो जाती है और इसी वजह से दो लोगों के बीच प्रगाढ संबंध स्थापित नहीं हो पाते।

जो मनुष्य के लिए सबसे जरूरी यही होता है कि वो अपने आप को अतीत की घटनाओं से फ्री रखें। उन घटनाओं से प्रभावित होकर वो दिमाग में किसी तरह की छवि ना बनाएं। कुछ लोग इस बात पर ये सवाल खडा कर सकते हैं कि फिर जीवन के अनुभव किस काम आयेंगे, लेकिन समझने की बात ये होती है कि हम जीवन के अनुभवों से भी भ्रमित तरीके से ज्ञान लेते हैं, सही तरीके से उनसे सीख ले ही नहीं पाते।

ठीक उसी प्रकार जिस तरह उस बुरी आंखोंवाले की आंखें जिम्मेदार नहीं थी, धोखा देने के लिए उसका स्वभाव जिम्मेदार था। लेकिन मनुष्य अपने अनुभव में उन बुरी आंखो को याद रखेगा, उस स्वभाव को भूल जाएगा। शिष्य अपने गुरु की बातों में इतना खो गया कि उसे चलते चलते जंगल के रास्ते में पडे हुए कांटे दिखाई नहीं दिए और अचानक उसके पैर में एक कांटा चुभ गया। गुरु ने उसका कांटा बाहर निकालते हुए उस्से पूछा।

ये काटा तुम्हारे पैर में क्यों लगा? इसके पीछे तुम किसे जिम्मेदार मानते हो? गुरु ने कहा कि तुम मुझे भी जिम्मेवार मान सकते हो। क्योंकि मैं तुम्हें एक बाते सुना रहा था। क्या तुम खुद को भी जिम्मेवार मान सकते हो कि तुम मेरी बातों में इतना खो गए कि तुम्हारा रास्ते पर ध्यान ही नहीं रहा? क्या तुम इन पेडों को जिम्मेदार मान सकते हो जिन्होंने ये कांटे इस रास्ते पर बिछा दिए? शिष्य ने उत्तर दिया कि गुरुदेव इसमें मैं खुद को ही जिम्मेवार मानता हूँ क्योंकि आप तो अपना काम कर रहे थे और इस पेड ने भी अपना काम किया। पर मैं अपना काम पूरे होशपूर्वक नहीं कर पाया।

अगर मैं चलने पर ध्यान लगाए रहता। अगर मैं आपकी बातो में पूरी तरह से खो नहीं जाता तो मुझे ये कांटा कभी नहीं लगता। इसमें पूरी तरह से मेरी ही गलती थी। गुरु ने अपने शिष्य की पीठ थपथपाते हुए आगे कहना शुरू किया कि जो घटनाएं हमारे मन को प्रभावित करती है, ज़रूरी हो जाता है कि उन घटनाओं को हम किसी भी तरह अपने मन से बाहर निकाल दें और उसके लिए सबसे सरल तरीका है कि अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सीखो।

उसे अपने दिल में अपने मस्तिष्क में बिठाकर मत रखो। जब तुम किसी दूसरे मनुष्य के सामने अपनी भावनाओं को व्यक्त कर देते हो तो तुम्हारे मन का बोझ हल्का हो जाता है। कुछ लोगों का स्वभाव ऐसा होता है कि वो अपने मन की बात किसी को नहीं बताते। ऐसे लोग अक्सर अपने अंदर ही अंदर दुखी होते रहते हैं। लेकिन वो अपने मन की बात किसी दूसरे आदमी के सामने नहीं बताते। इसके उलट कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने मन में किसी भी बात को रख नहीं पाते। उनके साथ कुछ भी अच्छा या बुरा होता है।

वो अपने मन की बात अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त कर देते हैं और तुमने खुद महसूस किया होगा कि जो लोग अपने मन की भावनाओं को व्यक्त कर देते है वो जीवन में ज्यादा आनंदित रहते हैं। कभी भी प्राकृतिक रूप से आये हुए वेग को रोकना नहीं चाहिए। जिस वेग को हम रोकने की कोशिश करते हैं। वो वेग हमें अंदर से ही खाने लग जाता है।

अगर तुम्हारा मन किसी बुरी घटना पर रोने का हो रहा है तो चीख चीख कर रोओ। अपने आप को रोको मत, उस वेग को पूरी तरह से बाहर आने दो। अगर किसी दूसरी घटना पर तुम्हारा मन खुश होने का आनंदित होने का हो रहा है तो पूरी तरह से नाचो गाओ। जिससे कि तुम उस वेग को बाहर निकाल सको और जब वो वेग अपनी पूरी गति के साथ बाहर आ जाता है तो पीछे छोड आता हैं एक खालीपन, एक अकेलापन, एक शांति।

एक मौन, एक अनुभूति गुरु ने शिष्य को समझाते हुए बताया कि जिस प्रकार तेज रफ्तार से चलता हुआ पानी अपने वेग से आने वाली सभी बाधाओं को तोड देता है। उसी प्रकार हमारे अंदर भावनाओं का उठने वाला अगर बाहर नहीं निकाला गया। अगर हमने बांध बनाने की कोशिश की तो वो उस बांध को तोड देगा और उस बांध को तोडने के बाद उसका कचरा हमारे मन के अंदर ही ठहर जाएगा। जो हमारे मन को दूषित कर देगा उसको गंदगी से भर देगा। अक्सर मनुष्य अपने मन में किसी घटना को दबा कर इसलिए रखता है की वो सोचता है कि अगर सामने वाले को इस घटना के बारे में पता चला तो वो पता नहीं मेरे बारे में क्या सोचेगा?

इसी विचार की वजह से वो अंदर ही अंदर खुद दुखी होता रहता है लेकिन सामने वाले को वो कुछ भी नहीं बताता लेकिन एक बार अगर वो हिम्मत कर सकता है, शुरुआत कर सकता है। जो उसका पूरा जीवन परिवर्तित हो सकता है। एक बार अगर उसके दिमाग की आदत बन गयी तो वो जीवन भर अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त करने से हिचकिचाएगा नहीं और अपने दिमाग की ये आदत हम २१ दिनों में पैदा कर सकते हैं। २१ दिनों तक अगर सही तरीके से हम अभ्यास करें तो हमारा दिमाग पूरी तरह से भावनाओं से मुक्त हो जाएगा। यह २१ दिनों का अभ्यास इस प्रकार है।

किस दिनों तक सबसे पहली बात जो याद रखनी है कि अपने मन में किसी भी बात को दबा कर नहीं रखना है, अगर हम किसी मनुष्य के बारे में अच्छा सोचते हैं तो हम उसे व्यक्त करें। अगर बुरा भी सोचते हैं तो उसे भी व्यक्त करें। परिणाम भूल जाएं कि परिणाम क्या होंगे? सिर्फ अपने दिमाग की ढुलाई करने पर विश्वास रखें। इससे आपके अंदर एक अद्भुत साहस पैदा होगा। जब आप किसी मनुष्य के बारे में वह सब बता पाएंगे जो आप उसके बारे में सोचते हैं।

तो आप खुद सोचिये की आपका खुद के ऊपर विश्वास कितना ज्यादा बढ जाएगा। आपके मन के सारे डर खत्म हो जाएंगे। हो सकता है कि इस में आपको चुनौतियों का सामना करना पडे, लेकिन जहाँ पर चुनौती नहीं होती वो कुछ अभ्यास भी नहीं होता। अभ्यास हमेशा चुनौतियों से भरा होना चाहिए। इससे आप सत्य, वचन बोलने का अभ्यास भी कर पाएंगे। अक्सर हम दूसरों को प्रभावित करने के लिए वो सब बोलते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है।

लेकिन वो नहीं बोलते जो हम उनके बारे में सचमुच में सोचते हैं और यही हमारी सबसे बडी भूल हो जाती है। इससे हमारा पूरा अस्तित्व झूठ बनकर रह जाता है और अपनी भावनाओं को व्यक्त करते समय यह भी जरूर ध्यान रखें कि आपके अंदर जो भावनाएँ उस इंसान के प्रति उठ रही हैं, उनके पीछे का मूलभूत कारण क्या है? उदाहरण के लिए जब एक नौकर अपने मालिक के लिए कोई काम करता है और वो काम अच्छे से नहीं कर पाता है तो मालिक उसे डांट फटकार देता है।

जिससे उसके अंदर उसके प्रति क्रोध की भावना ये उठती है। लेकिन समझने की बात यह होती है कि मालिक तो आपको कहेगा ही, वो तो डांटेगा ही। अगर आप काम अच्छे से नहीं करेंगे तो अगर आप काम अच्छे से कर रहे हैं और फिर भी आपका मालिक आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहा है तो आप खुलकर अपने मालिक को अपनी भावनाएँ व्यक्त कर सकते हैं। बिना ये सोचे की इसका परिणाम क्या होगा? अगर आप इस भावना को उठाएंगे तो आप अपनी नजरों में खुद ही नीचे गिरने लग जाएंगे। आपका आत्मविश्वास बिल्कुल खत्म हो जाएगा।

दूसरा अभ्यास जो तुम्हें २१ दिनों तक करना है वो ये है कि जो भी घटनाएं तुम्हारे साथ घटित होती है, कम से कम जीवन में एक इंसान ऐसा होना चाहिए जिसके सामने तुम अपने दिल की बात रख सको। चाहे अच्छी बात हो, चाहे बुरी बात हो, वो सब बातें तुम बिना कुछ सोचे, विचारे बिना इस डर से की वो इंसान तुम्हारे बारे में क्या सोचेगा?

तुम उस इंसान को अपनी सारी बातें बता सको और वो इंसान तुम्हारी सारी बातें सुनने के बाद तुम्हारे लिए कोई छवि पैदा ना करें। ऐसे इंसान अपने जीवन में खोजों और उनके सामने अपनी सारी भावनाएँ व्यक्त करने की कोशिश करो। दिन में जो कुछ भी घटित होता है। अच्छा लगता है, बुरा लगता है, किसी के प्रति आकर्षण होता है, उसको एक दोस्त की तरह बताने का प्रयास करो। इससे तुम्हें ये पता चल पाएगा कि तुम्हारा मन घटनाओं के प्रति किस प्रकार की भावनाएँ पैदा करता है।

तुम अपने मन को समझने में सक्षम हो पाओगे। जब तुम किसी दूसरे आदमी को ये सारी बातें बताते हो तो तुम खुद भी अपनी प्रतिक्रिया रोके उस घटना के प्रति तुम्हारा क्या रवैया रहा है? उसके प्रति खुद का आकलन भी कर पाते हो और तीसरा अभ्यास जो तुम्हारे मन को खाली रखेगा वह है योग निद्रा का अभ्यास। योग निद्रा किस प्रकार लेनी है, किस प्रकार उसका अभ्यास करना है वो विडिओ इस वीडियो के खत्म होते ही चल जाएगी। जिन लोगों को वो सुनना है तो आप उसको सुन सकते हैं। ये चर्चा खत्म होते होते गुरु और शिष्य उस जंगल को पार करके अपने आश्रम में पहुँच चूके थे।

तो दोस्तों उम्मीद करता हूं आपको इस कहानी से एक अच्छी सिख मिली होगी, यह कहानी आपको कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं और साथ ही इस कहानी को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे ताकि उन्हें भी इस कहानी से कुछ सिखने को मिल सके। धन्यवाद…

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