कामयाबी के लिए अकेलेपन से गुजरना ही होगा | Buddha story on loneliness | Life Lessons From Eagle

कामयाबी के लिए अकेलेपन से गुज़रना ही होगा

akelepan par buddh kee kahaanee

प्राचीन समय की बात है। एक समुद्र के किनारे एक गुरु अपना आश्रम बनाकर रहा करते थे। हजारों शिष्य उनसे ज्ञान ग्रहण करने के लिए दूर दूर से उनके पास आकर रहते थे। गुरु का ज्ञान देने का तरीका भी बडा ही अनूठा था। शुरुआत में वो अपने शिष्यों को उपदेशों के माध्यम से ज्ञान देते थे। उसके बाद वो अपने शिष्यों को उस ज्ञान का अनुसरण करने के लिए कहते थे। उस ज्ञान को अपने व्यवहारिक जीवन में उतारने को कहते थे। एक बार उस आश्रम में एक सम्राट अपने बेटे को लेकर पहुंचा। उस सम्राट ने उस गुरु से प्रार्थना की, की आप मेरे बेटे को अपने आश्रम में रहने दें और अपने तरीके से उसे ज्ञान दे। उसे इस आश्रम में बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगना चाहिए की वो किसी सम्राट का बेटा है।

उसे बिल्कुल साधारण शिष्यों की तरह ही ज्ञान देने की कृपा करें। गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा कि सम्राट ज्ञान इसी तरीके से लिया जा सकता है। अगर तुम अपने आप को दूसरों से बडा समझोगे तो तुम ज्ञान ग्रहण नहीं कर पाओगे। अगर तुम्हें ज्ञान ग्रहण करना है तो तुम्हें दूसरों की तरह अपने आप को साधारण समझना होगा। यही ज्ञान ग्रहण करने की सबसे पहली सीढी होती है। तुम निश्चिंत रहो, आज से तुम्हारे बेटे की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर रही।

ये कहकर गुरु सम्राट के बेटे को अपने साथ लेकर समुद्र के किनारे टहलने के लिए निकल गए। आश्रम के बाकी सभी बच्चे उस सम्राट को देख रहे थे। सम्राट अपने बेटे को अपने रथ पर बिठाकर लाया था, जिससे सभी बच्चे समझ गए थे की ये लडका सम्राट का बेटा है। इसी वजह से आश्रम के सभी बच्चे सम्राट के बेटे की तरह आकर्षित हो गए थे।

जब गुरु सम्राट के बेटे को लेकर समुद्र पर टहल रहे थे तो सम्राट का बेटा अचानक फूट फूटकर रोने लगा. क्योंकि अभी वो सिर्फ १२ वर्ष का था और १२ वर्ष की आयु में उसके पिता उसे अपने से दूर छोडकर चले गए थे। ये सदमा वो बच्चा सहन नहीं कर पा रहा था। वो नहीं समझ पा रहा था कि उसके पिता उसकी भलाई के लिए उसे उस गुरु के पास छोडकर गए हैं। उसे रोते हुए देखकर गुरु ने कहा। की बेटा मैं तुम्हें चुप नहीं करूँगा। हो सकता है की आज मैं तुम्हारे आंसू पोंछ दूँ, लेकिन कल तुम फिर अपने आपको अकेला पाओगे। याद रखना जीवन में इंसान अकेला आता है और अकेला ही जाता है। जितनी जल्दी जो इंसान इस बात को समझ लेता है वो उतनी जल्दी आत्मज्ञान के रास्ते पर निकल पडता है।

गुरु ने अपनी बात आगे बढाते हुए कहा कि जो इंसान अकेला रहना सीख लेता है वहीं खुद से प्यार कर पाता है और जो खुद से प्यार करना जानता है वो किसी के भी जाने का अफसोस नहीं करता क्योंकि वो खुद से ही प्यार करता है। धीरे धीरे तुम आश्रम के माहौल में ढल जाओगे। शुरुआत में तुम्हें समस्या आ सकती है, लेकिन कुछ दिनों के बाद तुम इसे आत्मसात कर लोगे। उसके बाद तुम्हे यही जगह बहुत अच्छी लगने लगेंगी। ये जगह तुम्हें अपनी महल जैसी लगने लगेंगी। संध्या हो चली थी, समुद्र के दूसरे छोर पर सूरज छिपने लगा था और अपनी लालिमा पूरे आसमान में बिखेर रहा था।

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बडा ही सुंदर दृश्य था और गुरु शिष्य को अपने साथ लेकर आश्रम में वापस लौट आए। उस शिष्य को भी थोडी सांत्वना मिली क्योंकि गुरु की आँखों में एक अभूतपूर्व शांति झलक रही थी और जब हम किसी एकांतवासी गुरु की आँखों में वो शांति देख लेते हैं तो हमारे हृदय से भी सारा भार हट जाता है। मन एकदम निर्मल हो जाता है। जब सम्राट का बेटा रात्रि का भोजन करने के लिए भोजन कक्ष में पहुंचा।

तो आसपास के सभी शिष्य उसके पास आने लगे। उन सभी को पता था कि ये सम्राट का बेटा है और अगर हम इससे दोस्ती कर लेते हैं तो उससे हमारा बहुत फायदा होने वाला है। यही सोचकर आश्रम के ज्यादातर ने उसे घेर लिया था। बस कुछ बच्चे जो अकेले रहने का महत्त्व समझते थे, जो दिखावे में विश्वास नहीं करते थे, वो उस सम्राट के बेटे के पास जाने की बजाय अपना पूरा ध्यान खाने पर लगा रहे थे।

और एकांत में बैठकर अपना भोजन कर रहे थे। कुछ दिनों के बाद सम्राट के बेटे की आश्रम के ज्यादातर बच्चों के साथ दोस्ती हो गई। अब वो आश्रम में उन बच्चों के साथ घूमता, उन्हीं के साथ अपना ज्यादातर समय बिताता। आखिरकार सम्राट का बेटा था। सुख सुविधाओं में पला बढा था। आसपास बहुत से दास औरत आसिया होते थे। आसपास अपने मित्रों से घिरे हो ना वही दिनचर्या उसने इस आश्रम में भी अपना ली थी। ऐसा नहीं था कि गुरु को ये सब पता नहीं था।

पर गुरु उसे अलग तरीके से ज्ञान देना चाहते थे। बच्चो को ज्ञान आप उपदेश देकर नहीं दे सकते, उन्हें साक्षात्कार कराना पडता है। उसके बाद उन्हें वो बात समझ आती है जो आप समझाना चाहते हैं। गुरु को ये बात पता थी कि अगर मैं इसे बोलकर बताऊँगा तो ये कभी समझ नहीं पाएगा। मुझे ऐसे दिखाना पडेगा इसे अहसास कराना पडेगा कि अकेले रहने से ही तुम अपनी शक्तिओं को जान पाओगे। ये सीख देने के लिए गुरु एक दिन उस शिष्य को अपने साथ एक पहाडी की चोटी पर ले गए।

पहाडी पर पहुँचकर गुरु ने उसे शिष्य से कहा कि अब तुम्हारा ज्ञान पूरा हो चुका है, बस एक आखरी रात तुम्हें यहाँ पर बितानी होगी। उसके बाद अगले दिन शाम को मैं तुम्हारे राजमहल में तुमको पहुंचा दूंगा। वो बच्चा तो ये सुनकर बहुत खुश हो गया कि अब मैं वापस अपने राजमहल चला जाऊंगा। फिर से मेरे दास और दासियां सारी भोग की वस्तु ये मेरे पास होंगी। उस शिष्य ने गुरु से पूछा कि गुरूजी मुझे आज रात आप यहाँ पहाडी पर क्यों छोड रहे हैं?

आखिर मुझे कौनसा आखरी ज्ञान यहाँ से मिलेगा? गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा कि यहाँ पर चट्टान के पीछे तुम्हें छिपकर बैठना होगा। यहाँ पर रोज़ रात को एक बाज जाता है। तुम्हें उस बाज को देखना है, बडी गौर से देखना है, हर गतिविधि देखनी है और उस बाज को देखने के बाद अगले दिन अगर तुम उस बाज की खूबियाँ मुझे बता पाए तो मैं तुम्हें तुम्हारे राजमहल वापस भिजवा दूंगा।

और हाँ, सुबह आने से पहले एक बात पर और ध्यान देना है एक चरवाहा यहाँ पर अपनी भेडों को चराने के लिए आता है। तुम्हें उन भेडों की गतिविधियाँ भी देखनी है। याद रखना बाज की गतिविधि रात को और भेडों की गतिविधि सुबह। अगर तुम दोनों की गतिविधि ध्यान से देखकर मुझे बता पाए तो तुम इस आश्रम से हमेशा के लिए आजाद हो जाओगे। तुम्हारा ज्ञान पूरा हो जाएगा। मैं तुम्हारे पिता को कह दूंगा।

की ये बच्चा हमारे आश्रम का सबसे ज्ञानी बच्चा है। ये कहकर गुरु अपने आश्रम में वापस लौट आए और वो बच्चा वहीं पर उस चट्टान के पीछे खडा हुआ उस बाज का इंतजार करने लगा। काफी वक्त बीत जाने के बाद वहाँ पर एक बाज अपने बच्चों के साथ पहुंचा। सम्राट के बेटे ने पूरी रात उस बाज की गतिविधि बडे ही ध्यानपूर्वक देखी और सुबह होने के बाद जब चरवाहा वहाँ पर अपनी भेडों को लेकर पहुंचा

तो उसने एक अभूतपूर्व दृश्य देखा। उसने देखा कि वो बाज भेड की एक मेमने को अपने पंजों में दबाकर आसमान में उड गया। उसने उस भेड के बच्चे का शिकार कर लिया था। ये सारा दृश्य देखकर वो बच्चा आश्रम में वापस अपने गुरु के पास पहुंचा। इससे पहले की गुरु उससे कुछ पूछते। उसने गुरु को प्रणाम करते हुए कहा कि गुरुदेव आप आश्रम के सभी बच्चों को यहाँ पर बुला लीजिये। मैं सब लोगों को बताना चाहता हूँ कि मैंने क्या देखा?

जब आश्रम के सभी बच्चे वहाँ पर पहुँच गए तो उस सम्राट के बेटे ने कहना शुरू किया कि मैंने अपने जीवन में बहुत से पक्षियों को देखा है, लेकिन बाज उन सभी पक्षियों में से सबसे अद्भुत और सबसे अलग होता है। उदाहरण के लिए एक तोता हम सभी ने देखा है तोता बोलता तो बहुत है लेकिन कभी ऊंचा नहीं उड पाता। लेकिन एक बाज जो कि हर समय शांत रहता है, वो आकाश को भी छू सकता है। उसमें आकाश को भी छू लेने का सामर्थ्य होता है।

जब भी एक बात अपने शिकार को निश्चित कर लेता है तो वो उसी शिकार पर अपनी नजरें गडाए रहता है चाहे वो कितनी भी उचाई पर क्यों ना हो। चाहे कितना भी बडा तूफान क्यों ना जाए। लेकिन उसकी नजर हमेशा अपने लक्ष्य पर स्थिर रहती है। आज सुबह जीस बाज को मैंने देखा। उसने हर भेड को अपना शिकार नहीं बनाया बल्कि उस भेड के झुंड में से उसने उस भेड के मेमने को अपना शिकार बनाया। उस बाज की तरह हमे भी अपना ध्यान अपने एक ही लक्ष्य पर स्थिर रखना चाहिए।

चाहे कितनी भी अडचनें क्यों ना आए, हमें अपना लक्ष्य स्पष्ट दिखाई देना चाहिए। १० २० अलग अलग लक्ष्यों में अपनी ऊर्जा बर्बाद करने की बजाय हमें किसी एक लक्ष्य पर पूरी एकाग्रता के साथ ध्यान देना चाहिए। तीसरी बात जो मैंने उस बाज से सीखी और जो हम सभी को सीखनी चाहिए वो ये है कि बाज कभी भी दूसरे पक्षी के साथ नहीं उडता वो हमेशा आकाश में अकेला उडता है।

इससे हमें ये सीख लेनी चाहिए की हमे कभी भी छोटी सोच वाले लोगों के साथ नहीं रहना चाहिए। आखिरकार हम भी वही बन जाते हैं जिनके साथ हम रहते हैं। इसीलिए या तो बडी सोच वालों के साथ रहो या फिर अकेले रहो क्योंकि जब हम अकेले रहते है तभी हम खुद की ताकत और खुद की कमजोरियों को जान पाते हैं। कमजोरियों को जान कर उनको दूर कर सकते हैं और अपनी ताकत को जानकर उसका सही इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन वो तभी संभव होगा।

जब हम अकेले रहना सीखेंगे। चौथी सीख जो हमें एक बाज से लेनी चाहिए की एक बाज हमेशा अपनी सीमाओं से ऊपर उठकर उडता है। जब तूफान आता है तो हर एक पक्षी अपने घोंसलें की तरफ भागता है। खुद को छुपाने की जगह ढूंढता है, लेकिन बाज ऐसा कुछ भी नहीं करता। वो खुद की सीमाओं को तोडकर बादलों से भी ऊपर उडने का प्रयास करता है। हवाएं उसे थपेडे मारती है, पंख उसके बाहरी हो जाते हैं, पानी और धूल की वजह से उसे कुछ दिखाई नहीं देता, लेकिन वो फिर भी आसमान की तरफ उडता रहता है

और अंततः बादलों से भी ऊपर निकल जाता है और वहाँ तब तक उडता रहता है जब तक मौसम ठीक नहीं हो जाता। अपनी सीमाओं को सिर्फ इसलिए तोड पाता है क्योंकि वो समस्या के आने पर उससे घबराता नहीं है, उससे डरकर बचने का प्रयास नहीं करता, बल्कि एक सकारात्मक नजरिये के साथ उसका सामना करता है। जीवन में चाहे कितनी भी अडचनें क्यों ना आए, हमें उन अडचनों से लडना चाहिए, ना की उनसे डर कर। कही छुप कर बैठना चाहिए। बहादुर तो वो लोग होते हैं जो तूफानों से टकरा जाते हैं कायर तो अपने घर में, अपने घोंसलें में अपनी जगह ढूंढकर बैठ जाते हैं।

पांचवीं बात जो हम एक बाज से सीखनी चाहिए की बाज कभी भी अपने घोंसलें में घास के कोमल तिनके नहीं रखता। जो तिनके एक कोमल होते जाते हैं वो उन्हें निकालकर फेंकता रहता है। उसी तरह चाहे कितनी भी आरामदायक जिंदगी आपको मिली हो, लेकिन उस आराम से ऊपर उठकर अपने आलस्य को तोडकर जीवन में मेहनत करते रहना चाहिए।

जीवन में पसीना बहाना चाहिए, शारीरिक मेहनत करनी चाहिए। अपने घोंसलें से कोमल तिनके उठा कर फेंक दो और आज ही अपने आलस्य को तोडकर निकल पडो। हर दिन अपने आप को चुनौतियां दो। हर दिन मुश्किलों से लडो क्योंकि वही मुश्किलें तुम्हें मजबूत बनाएंगी। जंगल के राजा शेर को भी झुंड बनाकर शिकार करते हुए देखा जा सकता है। लेकिन बाज हमेशा अकेला शिकार करता है क्योंकि वो जानता है कि भीड हौसला तो देती है। मगर साहस छीन लेती है। आदमी को हमेशा अकेले ही आगे बढना होता है। यही कारण होता है की वो जल, थल और नभ सभी जगहों पर अपने शिकार का परचम लहरा सकता है।

बाज की उम्र लगभग ७० साल की होती है लेकिन 40 साल में ही उसका शरीर बूढा हो जाता है। नाखून उसके पैरों में धंसने लगते हैं, पंख उसके शरीर में चिपक जाते हैं, उसकी चौंच मुड जाती है, उसका शरीर भारी हो जाता है। ऐसी स्थिति में शिकार करना तो क्या उडने की भी हालत नहीं रहती उसकी। ऐसे में उसके पास सिर्फ दो विकल्प होते हैं पहला या तो वह खुद की इस अवस्था को स्वीकार कर लें और भूखा प्यासा मर जाये या किसी दूसरे जानवर का शिकार बन जाये।

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और दूसरा विकल्प ये होता है की वो छह महीने एक बहुत ही दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरे और खुद को फिर से पहले जैसा मजबूत बना लें। लेकिन बाज तो बाज है वो दूसरा विकल्प चुनता है। इसके लिए वो खुद को एक बहुत ही ऊंचे पहाड पर ले जाता है जहाँ वो पहले अपनी सोच से अपने सारे पंख खींच खींचकर उखाड देता है और फिर चट्टान पर पैर मार मार कर अपने पंजे तोड देता है। उसके बाद उसी चट्टान पर अपनी चोंच को पटक पटक कर तोड देता है और इस लहूलुहान अवस्था में खुद को दूसरे जानवरों से छुपाता फिरता है।

अगले छह महीने तक वो इसी दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरता है और इंतज़ार करता है नए चोंच, नए पंख और नए पंचों का तब फिर वो अपनी नई जिंदगी शुरू करता है और निकल पडता है अपने शिकार पर और अगले ३० सालों तक फिर से राज़ करता है। इसीलिए समय आने पर हमें भी अपनी पुरानी आदतों को छोडना पडता है और कुछ नया सीखना पडता है। समय के साथ बदलना पडता है। अपने आप को तैयार करना पडता है वरना हमारा भी शिकार हो सकता है। हम भी पीछे रह सकते हैं।

इसके बाद सम्राट के बेटे ने भेडों की विशेषता बताते हुए कहा कि भेड हमेशा झुंड में चलती हैं। उन्हें झुंड में एक साथ चलने से हिम्मत मिलती है, लेकिन जैसे ही उन पर शिकार होता है वैसे ही वो भीड तितर बितर हो जाती है और उस पूरी भीड में से एक भी भेड अपने साथी की मदद करने के लिए वापस नहीं लौटती। इससे हमें ये सीख मिलती है की हमारे साथ कितने भी लोग खडे हो, किसी पर भी यकीन नहीं करना, यकीन करना तो खुद पर करना, क्योंकि बुरा समय आने पर वो भीड कब तितर बितर हो जाएगी। आपको पता ही नहीं चलेगा। गुरु को प्रणाम करते हुए सम्राट के बेटे ने अपने गुरु से कहा कि गुरुदेव अगर मुझसे कोई सीख रह गयी हो तो कृपया करके आप बताने की कृपा करें।

गुरु ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि ये सभी बातें जो अभी इस बच्चे ने बताई है सब सही है लेकिन ये सारी खूबियाँ आप लोगों में तभी पैदा हो पाएगी जब आप अकेले रहने का अभ्यास करेंगे। आपने देखा होगा की बाज कभी भी किसी दूसरे पक्षी के साथ नहीं रहता, ना ही किसी के साथ अपनी जोडी बनाता। वो आसमान मैं अकेला उडता है, और अकेला उडने की वजह से वो अपनी ताकत और अपनी कमजोरियों को जान पाता है।

इसके बाद गुरु ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा कि मैं आज रात इस सम्राट के बेटे को इसके राजमहल में छोडने के लिए जा रहा हूँ, क्योंकि इसके सीख यहाँ पर पूरी हो गयी है और ये कहकर गुरु उस सम्राट के बेटे का हाथ पकडकर राजमहल की तरफ रवाना हो गए और बाकी के सभी बच्चे उन्हें पीछे से जाते हुए देखते रहे.

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