इंसान की बर्बादी के 4 कारण | एक साधु की कहानी | Goutam Buddha Story Hindi

इंसान की बर्बादी के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन कुछ मुख्य कारण ऐसे हैं जो हर किसी को प्रभावित कर सकते हैं। इन कारणों को जानकर हम अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कदम उठा सकते हैं।

आज की कहानी एक सन्यासी की कहानी

आज मैं आपको यह कहानी बताने जा रहा हूं कि इंसान की ऐसी कौन सी गलतियां होती हैं जो इंसान को बर्बाद कर देती हैं, अगर हम अपनी बर्बादी का कारण जान लें तो हम अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। बहुत समय पहले की बात है एक नगर में एक धनी सेट रहा करता था, उस सेठ के पास सभी प्रकार की सुख सुविधाएं थी, लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी संतान के दुख में वह हमेशा चिंतित रहता था.

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फिर एक दिन उसे पता चला कि उसकी पत्नी गर्भवती है और वह अपनी पत्नी का बहुत ख्याल रखता था, इसलिए एक दिन उसके घर एक बेटे का जन्म हुआ। पुत्र जन्म से सेठ बहुत खुश हुआ। कोई कसर नहीं छोड़ी, उसका बेटा देखते ही देखते बड़ा हो गया, तब सेठ ने अपने बेटे को गुरुकुल भेजने का फैसला किया, ताकि वह पढ़-लिखकर विद्वान बन सके। ज्ञान प्राप्त करने हेतु गुरुकुल भेज दिया था.

गुरुकुल में वह बच्चा अच्छे से पढ़ाई करता था और अपने गुरु की सभी आज्ञाओं का पालन करता था, ऐसे में वह बच्चा धीरे-धीरे वहां का सबसे होनहार छात्र बन गया। गुरुकुल में बालक ने सभी वेद, पुराण और शास्त्रों का अध्ययन किया और एक महान विद्वान बन गया, लेकिन कहते हैं न कि समय कब बदल जाएगा यह कोई नहीं जानता।

ऐसे ही एक दिन किसी प्राकृतिक आपदा के कारण उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई और जब उसके माता-पिता की मृत्यु हुई, तो बच्चे की शिक्षा पूरी नहीं हुई थी और जब बच्चे ने खबर सुनी कि उसके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं और उसका सब कुछ बर्बाद हो गया है, तो लड़का इस सांसारिक मोह में बह गया, इसके बाद लड़के ने कहा कि गुरुकुल से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई में बिताएगा।

फिर जब बालक की शिक्षा पूरी हुई तो उसके बाद बालक साधु बन गया और वह सांसारिक चीजों से दूर हिमालय के जंगल में चला गया। अध्यापन को विश्राम देते हुए समय के साथ उनके सन्यासी की चर्चा चारों ओर होने लगी और दूर-दूर से लोग उनके पास शिक्षा लेने के लिए आने लगे और बहुत से लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए भी उनके पास आने लगे। वह समस्याओं का समाधान बड़ी आसानी से कर देता था, जिससे वह पूरे राज्य में प्रसिद्ध हो गया।

परन्तु जिस नगर में वह रहता था, वहां का राजा क्रूर व्यक्ति था। जब राजा को तपस्वी के बारे में पता चला तो उन्होंने तपस्वी से मिलने का फैसला किया। अगली सुबह राजा तपस्वी से मिलने के लिए अपने महल से निकल गया। और फिर वह उसकी कुटिया की ओर गया और वहां पहुंचकर राजा ने जब उसे साधु के रूप में देखा तो वह उसे देखता ही रह गया। उसके चेहरे पर एक अलग ही तेज था. जब वह साधु के पास पहुंचा तो उसे असीम शांति का अनुभव हुआ। साधु को प्रणाम किया और उसके पास बैठ गया और उससे बातें करने लगा

वह राजा पहली ही मुलाकात में साधु के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसी समय से उसने अच्छाई के रास्ते पर चलने का फैसला कर लिया और मैं सोचने लगा कि इतनी सी मुलाकात में यह साधु मुझे इतना बदल सकता है, तो ऐसा हमेशा रहेगा यदि तुम मेरे साथ रहोगे तो मेरा जीवन बदल जाएगा और यह सोचकर राजा साधु से अपने महल में चलने का अनुरोध करने लगा। राजा का आगरा सुनकर सन्यासी माना नहीं कर पाया और वो राजमहल चलने को तैयार हो गए,

तब राजा सन्यासी को महल की ओर ले गए। महल पहुँचकर राजा ने साधु की बहुत खातिरदारी की और उसके बाद राजा ने साधु को एक दाहिने कमरे में भोजन कराया। भोजन के समय साधु ने राजा को धन्यवाद दिया और राजा से जाने की अनुमति मांगी। यह सुनकर राजा ने कहा की आप हमारे बाग में जब तक चाहे तब तक रह सकते हैं.

आपको यहां किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं होगी और आप यहां रहेंगे तो हमारे लोगों को भी अच्छा लगेगा और हमें भी अच्छा लगेगा। यह सुनकर साधु ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। राजा के आदेशानुसार सेवकों ने एक सुंदर कुटिया बनाई, उसके बाद साधु उसी कुटिया में रहने लगा। राजा ने उनकी बहुत सेवा की, लेकिन कई वर्षों के बाद राजा और रानी को किसी जरूरी काम से दूसरे राज्य में जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने साधु की सेवा के लिए एक सेवादार नियुक्त कर दिया, लेकिन राजा के जाने के बाद वह सेवादार बीमार पड़ गया और अपने घर चले गए और कभी लौटकर वापस नहीं आया.

तो तपस्वी को गुस्सा आ गया और उसने राजा को खूब खरी-खोटी सुनाई और राजा से कहा कि जो जिम्मेदारी आप पूरी नहीं कर सकते, वह जिम्मेदारी आप क्यों लेते हो, तब राजा ने तपस्वी से पूछा और कहा कि सन्यासी क्या मुझसे कोई गलती हो गई है। तो इसके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूं, कृपया मुझे क्षमा करें और मेरा क्रोध शांत करें और बताएं कि क्या हुआ था, यह सुनकर साधु ने उससे कहा कि तुम्हारे जाने के बाद मुझे यहां किसी ने भोजन नहीं दिया और मुझे कई दिनों तक कष्ट सहना पड़ेगा। यहां आकर मैं भूखा रहा और किसी ने मुझसे मेरा हाल भी नहीं पूछा।

यह सुनकर राजा ने तपस्वी से माफी मांगी और कहा कि आज के बाद ऐसी गलती नहीं होगी, फिर कुछ देर बाद मामला शांत हुआ जब राजा और तपस्वी के बीच बातचीत चल रही थी, रानी भी छुपकर सुन रही थी यह सारी बातचीत। उसके बाद राजा ने उसे तपस्वी से शिकायत का मौका नहीं दिया और उसकी खूब सेवा की, लेकिन कुछ दिनों के बाद राजा को किसी जरूरी काम से अपने राज्य से बाहर जाना पड़ा।

लेकिन इस बार राजा ने राज्य से बाहर जाने से पहले अपनी रानी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तब तक तुम स्वयं ही उस तपस्वी की देखभाल करोगी। यह सुनकर रानी बोली, “हाँ महाराज, आप अवश्य जाइये, मैं सन्यासी महाराज की अच्छी देखभाल करूंगी।” बाद में रानी प्रतिदिन भोजन बनाकर सन्यासी महाराज के पास भेजती थी, लेकिन एक दिन रानी स्नान करने चली गयी और साधु को भोजन देना भूल गयी। भोजन क्यों नहीं आया, इसके बाद साधु ने सोचा कि वह स्वयं महल में जाकर देखेगा कि अब तक भोजन क्यों नहीं आया और फिर वह महल में पहुंच गया।

जब वह महल के अंदर पहुंचा तो वहां उसकी नजर रानी पर पड़ी रानी के लंबे-लंबे गाने काले केस जोकी उसकी कमर पर लहरा रही थी. उसकी कजरारी आंखें जो देखने मात्रा से ही घायल कर दे, उसकी हिरानी जैसी चाल, रानी के इतने सुंदर रूप को देखकर सन्यासी चकित हो गया और रानी की सुंदरता सन्यासी के मन में घर कर गई और वह वहां से बिना कुछ कहे ही अपनी कुटिया में लौट आया

सन्यासी रानी के रूप की सुंदरता को भुला ना सका और वह खाना पीना छोड़कर अपनी कुटिया में पड़ा रहा उसने कई दिनों तक कुछ भी नहीं खाया जिस वजह से वह बहुत कमजोर हो गया फिर कुछ समय बाद राजा वापस लौटे और जब उसे सन्यासी की हालत का पता चला तो वह सीधे सन्यासी के पास पहुंच गए और बोले की ही भगवान क्या बात है

आपको क्या हो गया और आप इतने कमजोर कैसे हो गए. किस गहरी सोच में डूबे हो, क्या मुझसे कोई गलती हो गई है? तब साधु ने कहा नहीं राजन आपने कोई गलती नहीं की है, यह सुनकर राजा बोले तो फिर क्या बात है आप मुझे बताएं मैं आपकी समस्या का समाधान अवश्य करूंगा।

यह सुनकर तपस्वी ने राजा से कहा कि आपकी रानी की अद्भुत सुंदरता को देखकर मैं उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया हूं और अब मैं रानी के बिना नहीं रह सकता। यह सुनकर राजा हैरान हो गया और कुछ देर सोचने के बाद राजा ने उसे सन्यासी से कहा मैं आपको रानी दे दूंगा. यह सुनकर सन्यासी बहुत प्रसन्न हुआ,

फिर राजा सन्यासी को लेकर महल चले गए और जब राजा और सन्यासी महल पहुंचे तो उस दिन रानी ने अपने सबसे सुंदर वस्त्र और आभूषण पहने थे, फिर राजा रानी के पास गया। राजा ने रानी से कहा कि इस साधु की मदद करनी चाहिए, वह बहुत कमजोर स्थिति में जा चुका है और मैं नहीं चाहता कि एक बुद्धिमान व्यक्ति की हत्या का कलंक मेरे सिर पर लगे।

राजा की यह बात सुनकर रानी ने राजा से पूछा की आखिर इन सन्यासी के इस दुख का कारण क्या है तो राजा ने रानी से कहा की सन्यासी आपकी अद्भुत सुंदरता के दीवाने हो गए हैं राजा की यह बात सुनकर रानी ने कहा की राजन आप चिंता मत करिए. अब आप सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दीजिए मुझे पता है की मुझे अब क्या करना है आपके ऊपर ना तो सन्यासी की हत्या का पाप लगेगा और ना ही उससे मेरे पवित्र धर्म का नाश होगा. रानी की यह बात सुनकर राजा ने रानी को सन्यासी को सौंप दिया.

उसके बाद सन्यासी रानी को लेकर कुटिया पर पहुंचे जब रानी सन्यासी की कुटिया पर पहुंची रानी ने सन्यासी से कहा की हमें रहने के लिए घर चाहिए हम इस झोपड़ी में नहीं रह सकते. यह सुनकर सन्यासी राजा के पास गया और राजा से जाकर बोला की हे राजन हमें रहने के लिए घर चाहिए. सन्यासी की बात सुनकर राजा ने उनके लिए घर का प्रबंध कर दिया, फिर सन्यासी रानी को लेकर घर पहुंचा जब रानी सन्यासी के साथ उसके घर पर पहुंची तो रानी ने सन्यासी से कहा की यह घर तो बहुत गंदा है,

और इसकी हालत बहुत खराब है मैं इस घर में नहीं रह सकती. यह सुनकर सन्यासी फिर से राजा के पास गया और राजा के पास जाकर बोला की ही राजन जो आपने हमें घर दिया है उसे घर की हालत बहुत खराब है, सन्यासी की बात सुनकर राजा ने उसे घर की हालत ठीक करवा दी, उसके बाद फिर रानी घर के अंदर गई और नहा धोकर बिस्तर पर आ गई

तभी साधु भी बिस्तर पर आ गया, फिर उसके बाद रानी ने साधु से कहा कि आप जानते हैं कि आप कौन हैं और क्या बन गए हैं, आप एक महान साधु थे जिनके लिए राजा स्वयं सभी आवश्यक चीजें उपलब्ध कराते थे। जिनके पास दूर-दूर से लोग ज्ञान प्राप्त करने आते थे, जो लोगों को सत्य का मार्ग दिखाते थे। जो लोगों की समस्याओं का समाधान करते थे, जिन्हें सभी लोग गुरु मानते थे।

जिसे सब लोग भगवान मानकर पूजते थे और आज आप वासना के कारण मेरे गुलाम हो गए हैं रानी की यह बात सुनकर साधु को झटका लगा और उसे एहसास हुआ कि वह एक साधु है और यह सब क्या कर रहा है। वह ये सब सुख-सुविधाएँ छोड़कर शांति की तलाश में जंगलों में चला गया था।

जोर-जोर से रोने लगा और चिल्लाने लगा और रानी से कहने लगा की मुझे समा कीजिए महारानी मैं यह क्या करने जा रहा था मैं अभी आपको राजा को सौंप कर आता हूं. सन्यासी की बात सुनकर रानी ने सन्यासी से प्रश्न किया की साधु महाराज मेरे मन में एक प्रश्न उठ रहा है, कृपया मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए. रानी की बात सुनकर सन्यासी ने कहा की पूछो तुम्हारा क्या प्रश्न है,

फिर रानी ने कहा की जब आपको उस दिन भोजन नहीं मिला तो आप बहुत क्रोधित हो गए, तब मैंने आपके ये रूप पहली बार देखा था और तभी से मैं आपके व्यवहार में परिवर्तन महसूस कर रही थी, ऐसा क्यों हुआ साधु महाराज आखिर आपको इतना क्रोध क्यों आया. रानी की बात सुनकर सन्यासी ने रानी को समझाया की जब मैं जंगल में था तो मुझे समय पर भोजन भी नहीं मिलता था

लेकिन जब मैं महल में आया तो महल में आने के बाद मुझे सारी सुख सुविधाएं मिली और फिर मैं इन सभी सुख सुविधाओं के मोह में फैंस गया और मुझे इसके प्रति लगाव उत्पन्न हो गया और फिर मुझे इसको पाने का लालच उत्पन्न हो गया और जब मुझे यह नहीं मिला तो मेरे अंदर क्रोध उत्पन्न हुआ फिर सन्यासी ने कहा की महारानी सच तो यह है की अगर इच्छा पुरी नहीं हो तो क्रोध उत्पन्न होता है, और अगर इच्छा पुरी हो जाए तो लालच बन जाता है. फिर सन्यासी ने रानी से कहा यह इच्छा की पूर्ति ही मुझे वासना के द्वार तक लेकर आई है और मैं आपके प्रति आकर्षित हो गया इसके बाद वो सन्यासी रानी को लेकर राजा के पास गया और बोला की राजन मुझे क्षमा कर दीजिए.

मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है यह लो आपकी रानी मुझे यह सब नहीं चाहिए मैं अपनी इच्छा के वशीभूत होकर यह गलत कार्य करने जा रहा था और अपने जीवन को बर्बाद कर रहा था. लेकिन अब मुझे सब कुछ समझ आ गया है उसके बाद उसे सन्यासी ने कहा की हे राजन मनुष्य की बर्बादी का कारण उसकी चार आदते बनती है और दुनिया की हर एक व्यक्ति के अंदर यह चार अवगुण होते हैं

लेकिन जो व्यक्ति इन पर नियंत्रण का लेता है वह दुख और परेशानियों से बच जाता है वहीं जो व्यक्ति इन चारों दोषों पर नियंत्रण नहीं कर पता है वो बर्बाद होने के कगार पर पहुंच जाता है यह सुनकर राजा ने कहा की महाराज आप मुझे वो चार आदते बताइए. जिससे की मनुष्य की बर्बादी हो जाती है फिर सन्यासी ने राजा को मनुष्य को बर्बाद करने वाली आदतों के बारे में बताया की हे राजन मनुष्य को बर्बाद करने वाली

पहली आदत है इच्छा – क्योंकि इच्छा ही दुनिया की हर एक व्यक्ति के अंदर सबसे पहला अवगुण होता है और जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं को नियंत्रण में नहीं रख पता है वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पता है क्योंकि जैसे ही उसकी एक इच्छा पुरी होती है

वह दूसरी की ओर बढ़ाने लगता है और दूसरी पुरी होती है तो तीसरी इच्छा उसके मन में जागृत हो जाती है और फिर ऐसे करते-करते इच्छाओं पर नियंत्रण ना होने के कारण इसी जाल में उलझा रहता है और दुखी रहता है. इसीलिए राजन जब हम इच्छाओं पर नियंत्रण पा लेते हैं तो हम हमारे मन पर भी नियंत्रण पा लेते हैं और जब हमारा मन हमारे बस में होता है तो हमें सुखी प्राप्ति होती है फिर जो हम चाहते हैं वहीं हमारे साथ होता है फिर सन्यासी कहता है की हे राजन मनुष्य को बर्बाद करने वाली

दूसरी आदत है वासना – वासना का जन्म हमारे मन में उठने वाली इच्छाओं से होता है जिस प्रकार इच्छा का कोई अंत नहीं होता और मनुष्य वासना के जाल में फसता ही चला जाता है वासना के वशिभूत होकर मनुष्यों को कुछ भी नजर नहीं आता है

आज तक जितनी भी लड़ाइयां हुई है उनका सबसे बड़ा कारण स्त्री को पाने की इच्छा ही रही है स्त्री के प्रेम में वशिभूत होकर राजा महाराजाओं ने आज से पहले बहुत सारे युद्ध किए हैं. रावण भी संसार का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति था, लेकिन उसने भी माता सीता कि सुंदरता की जाल में फसकर अपना सब कुछ बर्बाद कर लिया, उसकी मृत्यु का कारण एक स्त्री ही बनी थी. कई राजा महाराजा तो युद्ध में इसलिए हर गए क्योंकि वो लोग स्त्रियों से रासलीला रचने में ही रह गए.

ईश्वर ने तो स्त्री की उत्पत्ति इस संसार को बढ़ाने के लिए की है लेकिन आजकल लोगों ने इसे अपनी वासना का शिकार बना लिया है अपने मनोरंजन का साधन समझने लगे हैं और जब उन्हें अपना यह मनोरंजन नहीं मिलता तो वो पागल हो जाते हैं और ना जाने क्या-क्या कर बैठते हैं. इसीलिए हे राजन जितना हो सके उतना वासना से दूर रहना चाहिए, फिर सन्यासी कहता है की हे राजन मनुष्यों को बर्बाद करने वाली

तीसरी आदत है क्रोध – क्योंकि जब मनुष्य की वासना की पूर्ति नहीं होती है तो उसके अंदर क्रोध उत्पन्न हो जाता है और जब व्यक्ति को क्रोध आता है तो उसे पर उसका नियंत्रण नहीं होता है और फिर वो क्रोध में आकर कहीं गलत निर्णय ले लेता है वो दूसरों को भला बुरा कह देता है गलियां निकल देता है और जब उनका क्रोध शांत होता है तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाता है लेकिन तब तक तो सब कुछ बर्बाद हो चुका होता है

क्रोध के कारण मनुष्य के कई बने बनाए कम भी बिगड़ जाते हैं जब मनुष्य के भीतर क्रोध उत्पन्न होता है तो वो अंदर से बहुत कमजोर हो जाता है और एक कमजोर मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता है उसे कभी भी सफलता हासिल नहीं हो सकती. क्रोध हमारे भीतर तनाव को उत्पन्न करता है और अगर एक बार हम तनाव में चले गए तो हमारा पूरा जीवन बर्बाद हो जाता है. फिर सन्यासी कहता है की हे राजन मनुष्य को बर्बाद करने वाली

चौथी आदत है लालच – हे राजन लालच का फल सदैव बुरा होता है लालच में पढ़कर हम बहुत से लोगों का बुरा कर देते हैं हर मनुष्य के जीवन में कभी ना कभी ऐसे लालच अवश्य आते हैं जब वह लालच कर बैठता है और अधिक पाने की लालसा में वह कुछ ऐसा कर बैठता है जिससे जो उसके पास था वह उसे भी गवा देता है. क्योंकि जैसे ही व्यक्ति की एक इच्छा पुरी होती है उसका लालच बढ़ जाता है और उसके मैन में और कई जन्म लेने लगती है जो व्यक्ति लालच करता है वह कामयाबी से कोसों दूर रहता है.

क्योंकि एक ना एक दिन लालच का दुश्मन सामने आता ही है अगर हम समय रहते ही लालच को त्याग दें और उसकी जाल में ना फंसे तो हम एक सफल व्यक्ति अवश्य बन सकते हैं. फिर अंत में सन्यासी राजा से कहता है की हे राजन अगर मनुष्य चारों आदतों को छोड़ देता है तो उसे जीवन में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता. जो इन आदतों को नहीं छोड़ता है उसे जीवन में बर्बाद होने से कोई रोक सकता. मैं एक सन्यासी होकर इसकी जाल में फस गया था, तो सामान्य मनुष्य तो इससे बच नहीं सकता. इसीलिए हे राजन मनुष्यों को इन आदतों से हमेशा बचाना चाहिए.

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