समय कितना भी बुरा हो बस ये 2 बातें याद रखना-गौतम बुद्ध | Buddhist Story On Mindset | Moral Story

समय कितना भी बुरा हो बस ये 2 बातें याद रखना

एक बार एक बहुत ही दुखी व्यक्ति एक महात्मा के पास आकर कहता है, मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ। मैं अपनी बीवी, बच्चों और अपने परिवार को भी खुश नहीं रख सकता। मैं अपने लिए भी कुछ नहीं कर पा रहा, कभी कभी तो मुझे अपनी जिंदगी को खत्म कर देने के भी ख्याल आते हैं। आप इतनी साधनाएं करते हैं, इतनी तपस्या करते हैं। क्या आप मुझे कोई ऐसा मार्ग बता सकते हैं जिससे मैं अपने बुरे वक्त से बाहर आ सकूँ? मेरा बहुत बुरा समय चल रहा है।

Buddha story on mentality

दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी मेरे लिए बहुत मुश्किल हो गया है। अब आप ही बताइए कि ऐसे वक्त में मैं जिंदा रहूं तो कैसे रहूँ? कैसे अपने परिवार को खुश रहूँ? कृपया करके कोई साधारण सा तरीका बताने की अनुकंपा करें, ताकि मैं आसानी से समझ सकूँ क्योंकि मैं बहुत पढा लिखा नहीं हूँ। अगर आप बडी बडी ज्ञान की बाते करेंगे तो शायद मैं कभी समझ भी नहीं पाऊंगा। ये सुनकर महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा कि तुम एक काम कर सकते हो, मेरा

उसने सामने की तरफ इशारा करते हुए कहा कि उस ऊंची पहाडी पर एक मंदिर है और उस मंदिर के पास चीटियां का एक घर है जहाँ पर हजारों चीटियां रहती है। तुम्हें सुनने में बडा अजीब लगेगा लेकिन वो चीटियां उस मंदिर की जमीन को खराब कर देती है। उस मिट्टी की उपजाऊ शक्ति वो खत्म कर देती है जिसके कारण वहाँ पर कोई भी पेड या कोई भी घास पनप नहीं पाती है। तुम मेरा एक काम करो, उसके बाद मैं तुम्हें तुम्हारे सवालों के जवाब दूंगा।

तुम 7 दिन तक रोज़ उस पहाडी पर जाओ और उस चीटियां के घर को तहस नहस कर दो, उसको तोड दो, जब भी तुम्हें कोई चींटियों का घर दिखें मंदिर के आसपास तो उसे वही पे तहस नहस कर देना। लेकिन याद रहे घर को तोडने में कोई भी चींटी मरने नहीं चाहिए। इस बात को समझने का प्रयास करते हुए वो युवक वहाँ से चला गया। शायद उसको कुछ समझ में नहीं आया था कि महात्मा जी ऐसा क्यों करवा रहे है?

वो तो उन चिडियों पर अन्याय कर रहे हैं, उनका घर तुडवा रहे हैं, उन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैं, आखिर कौन महात्मा ऐसा करेगा? लेकिन फिर भी उस महात्मा की बात मानते हुए वो अगले दिन से ही पहाडी पर जाना शुरू कर देता है। जब वो पहले दिन पहाडी पर पहुंचता है तो देखता है की बहुत सारी चींटियां अपना खाना जुटाने में लगी हुई है। सारी चींटियां कतार से चल रही थी और अनाज के छोटे छोटे कण उठाकर अपने घर में जमा करती जा रही थी।

ये देखकर पहले तो उस युवक का मन कमजोर पड गया। उसने सोचा की ये इतनी मेहनत करके अपना घर भर रही है और मैं इनके घर को तबाह कर दूंगा तो इनको कितना बुरा लगेगा? लेकिन फिर उसने उस महात्मा की बात याद करते हुए उस घर को तोडना शुरू कर दिया। जल्द ही चींटियों में हाहाकार मच गया। वो इधर उधर दौडने लगी। अभी तक जो कतार में चल रही थी अब वो बिखर गई और इधर उधर

अपनी जान बचाने के लिए भागने लगी। थोडी देर में घर टूट गया और सारी चींटियां इधर उधर छुपने के लिए भाग चुकी थी। ये करने के बाद वो युवक दुखी मन से वापस अपने घर पर लौट आया। उसका मन परेशान था, दुखी था, पश्चाताप से भरा हुआ था। फिर उसने अपने बिस्तर में रात में लेटे लेटे ही सोचा की अब तो उन चींटियों का घर तबाह हो चुका है। अब वह वापस जाने से क्या प्रयोजन है?

अब क्या फायदा होगा? क्योंकि चींटियों का घर तहस नहस करने के लिए महात्मा जी ने कहा था जो मैं कर चुका हूँ, लेकिन फिर कुछ सोचकर अगले दिन उसने फिर से जाने का निश्चय किया और अगले दिन सुबह सुबह उठ कर वो वापस उसी पहाडी पर पहुँच जाता है। पहाडी पर पहुँचकर वो उसी जगह पर पहुंचता है जहाँ पिछले सुबह उसने उस घर को तहस नहस कर दिया था। लेकिन वो ये देखकर चौंक जाता है कि उन चींटियों ने फिर से अपना घर उसी जगह पर बना लिया था।

और अब वो फिर से अपने घर के लिए सामान इकट्ठा करने में जुटी हुई थी। उस आदमी को देखकर लगा की ये चीटियां कितनी मूर्ख है। इनको पता है की कल ही इनका घर इसी जगह पर तबाह किया गया है और उसी जगह पर उन्होंने अपना नया घर भी बना लिया और ये सोचकर वो आदमी हंसने को हुआ लेकिन फिर से महात्मा की बात याद करते हुए उसने उन चींटियों का घर फिर से तबाह करना शुरू कर दिया। फिर से उन चींटियों में हलचल मच गई।

और थोडी देर में वो चीटियां इधर उधर अपनी जान बचाने के लिए भागने लगी। कुछ ही देर में उनका घर फिर से नष्ट हो गया और वो युवक थोडा संतोष के भाव से की। इस बार तो मैंने अच्छी तरह से उस घर को तबाह कर दिया है। अब तो वो चिडिया यहाँ पर अपना घर बना ही नहीं पायेगी। इसीलिए जाने से पहले उसने उस घर पर ठंडा पानी भी डाल दिया ताकि चीटियां वहाँ पर अपना घर न बना सके और इस तरह अपना कर्म पूरा करके वो युवक फिर से अपने घर लौट आया।

आज रात में सोते वक्त फिर से वो इंसान यही सोच रहा था की क्या महात्मा ये सही काम करवा रहे है? क्या किसी का घर तबाह करना किसी सिद्ध पुरुष को शोभा देता है? क्या हो अगर वो महात्मा सिद्ध पुरुष हो ही ना? क्या होगा अगर वो मुझे बेवकूफ बना रहे हों? लेकिन फिर उसने निश्चय किया कि मैं अपने काम को पहले पूरा कर लेता हूँ। उसके बाद ही पता चलेगा कि महात्मा मुझसे ऐसा क्यों करवा रहे थे और यही सोचकर वो रात में सो जाता है।

अगले दिन सुबह उठकर वो फिर से उसी पहाडी की ओर निकल जाता है। पहाडी पर पहुँचकर वो उसी जगह पर पहुंचता है जहाँ पर उसने उनके घर को तबाह कर दिया था और वो ये देखकर खुश हो जाता है की वहाँ पर कोई भी घर नहीं था। सारी चींटियां वहाँ से भाग चुकी थी। अब उसने सोचा की अब मेरा रोज़ रोज़ आने का क्या प्रयोजन? क्योंकि चीटियां तो अपना घर बदल चुकी है और महात्मा जी ने मुझे 7वें दिन आने के लिए कहा था। लेकिन आज तो तीसरा ही दिन है। अब बाकी 4 दिन वापस आने का क्या प्रयोजन? और यही सोचकर उसने निश्चय किया की यहाँ से वो सीधा उसी महात्मा के पास जाएगा।

और उनको ये सारी खबर बता देगा। जब वो वापस मुडकर उस पहाडी से उस महात्मा की कुटिया की तरफ जाने लगा तो उसने देखा तो अचानक उसकी नजर एक और घरौंदे पर पडी जो कि चींटियों का ही बनाया हुआ था। मतलब की वो घरौंदा चींटियों ने ही बनाया था और अब वो चींटियां नए घर में वास कर चुकी थी। ये नया घर उनके पुराने घर से थोडी ही दूरी पर था और जब उसी युवक की नजर उस घरौंदे पर पडी

तो उसने सोचा कि शायद महात्मा को पता था कि ये चींटियां अपना घर यहाँ से बदलकर किसी दूसरी जगह पर बना लेगी। इसीलिए उन्होंने मुझे 7वें दिन आने के लिए कहा था और ये विचार करके वो उसका नया घर भी तोडने के लिए पहुँच जाता है। जब वो वहाँ पहुंचा तो चीटियां उसी तरह अपने कार्य में लगी हुई थी। वो अपने लिए खाना इकठ्ठा कर रही थी और अपने घर में जमा करती जा रही थी जो पुराना घर टूटा था।

वहाँ भी अनाज के कारण बचे हुए थे और चीटियां वहाँ से भी अनाज इकट्ठा कर करके वापस अपने नए घर में ला रही थी। अब यहाँ पर फिर से युवक का मन थोडा कमजोर पड गया क्योंकि वो खुद भी कमजोर था। खुद भी वक्त का मारा हुआ था इसीलिए उसके मन में उन चींटियों के प्रति दया का भाव उमड रहा था। उनके ऊपर उसे दया आ रही थी। वो चाहता था कि उनकी मदद करे लेकिन वो उल्टा उनको नुकसान पहुंचा रहा था। लेकिन उस महात्मा की बात को याद करते हुए

उसने फिर से उस घर को तोडने का निश्चय किया और उसने इस बार बडी ही सावधानी के साथ बिना किसी चींटी को कोई नुकसान पहुँचाए वो घर तबाह करना शुरू कर दिया। वक्त थोडा ज्यादा लगा क्योंकि किसी भी चींटी को नुकसान न पहुंचाने की शर्त महात्मा ने पहले ही रखी थी। इसीलिए उसको बडी सावधानी के साथ उन घरों को तबाह करना था। लेकिन आखिरकार उसने उस घर को भी तबाह कर दिया और उस घर को तबाह करने के बाद

वो बडे ही दुखी मन से। इस बार वो पहले से भी ज्यादा दुखी था क्योंकि उसने उनका नया घर भी तोड दिया था। वो उन चींटियों को बसने ही नहीं दे रहा था और वो अब अपने आप को शैतान या दानव समझने लगा था। लेकिन फिर भी उस महात्मा की बात को मानते हुए वो अपने घर पर दुखी मन से वापस आ गया। रात में सोने से पहले एक बार उसने फिर से सोचा कि मैं कितना बडा शैतान हूँ, कितना बडा दानव हूँ, पुराना घर तो छोडो।

मैं उन चींटियों को कहीं भी बसने के लिए कोई जगह ही नहीं दे रहा हूँ। वो चीटियां मेरे बारे में क्या सोचती होंगी? वो कितना दुत्कारती होंगी उस परमात्मा को जो मेरे द्वारा ये काम करवा रहा है? लेकिन फिर भी उसने अगले दिन जाने का निश्चय किया और अगले दिन सुबह सुबह वो फिर से वहाँ पर पहुँच गया। वो ये देख कर फिर से आश्चर्यचकित रह जाता है की इस बार चींटियों ने एक और नई जगह पर अपना घर बना लिया था।

तो पहले से भी ज्यादा ऊर्जा के साथ काम कर रही थी और उन्होंने एक रात में पहले से भी बडा घर बना लिया था और अब वो फिर से अपना अनाज और खाना इकट्ठा करने में जुटी हुई थी। ये देखकर उस आदमी को लगा की ये चींटियां किस मिट्टी की बनी हुई है। मैं इनको बार बार यहाँ से भगाने की कोशिश कर रहा हूँ और ये वही पर अपना घर बना लेती है। क्या इनको पता नहीं है कि मैं इन्हें यहाँ पर कभी भी बसने नहीं दूंगा? ये चींटी है दिखने में इतनी छोटी है।

लेकिन फिर भी ये मुझसे हार नहीं मान रही है। बडी ताज्जुब की बात है और इस बार उसने गुस्से में उस घर को तहस नहस करना शुरू कर दिया लेकिन इस बार तहस नहस करते हुए कुछ चीटियां वहीं पर मर गयी। उसके पैरों तले कुचल दी गई। कुचलने के बाद जब वो अपने अहंकार से बाहर आया तो उसने देखा कि गुस्से में उसने उन चींटियों को कितनी क्षति पहुंचा दी है। उसका मन पश्चाताप से भर गया।

और वो रोता हुआ अपने घर की तरफ बढ गया। रात में सोते वक्त उसने सोचा कि मैं उन चींटियों पर बहुत ज्यादा अत्याचार कर रहा हूँ, अब इससे ज्यादा अत्याचार में नहीं कर पाऊंगा और यही सोचकर वो अगले दिन उन चींटियों के लिए अपने घर से थोडा आटा लेकर उसी पहाडी पर पहुँच जाता है। आज उसके मन में उन चींटियों के प्रति श्रद्धा का भाव था, दया का भाव था। आज वो उनकी मदद करना चाहता था और जब वो वहाँ पर पहुंचा.

तो चीटियां फिर से अपने नए घर को बनाने में जुटी हुई थी। उसने बडी ही करुणा के साथ उन चींटियों को अपना लाया हुआ आटा खिलाया और अगले तीन दिनों तक वो ऐसा ही करता रहा। वो रोज़ सुबह जाता और उन चींटियों को अपने हाथों से आटा खिलाता। 7 दिन के बाद वो युवक उस महात्मा के पास पहुँचकर हाथ जोडकर बोलता है की हे महात्मा जी मुझे माफ़ कर देना। मैंने उन चींटियों का घर तबाह करने के लिए बहुत कोशिश की।

मैंने उनका घर तबाह किया भी एक बार नहीं चार चार बार मैंने उनका घर तोडा, उसके बाद मैं हिम्मत नहीं कर पाया। उनके घर को नहीं तोड पाया। मैं समझ सकता हूँ कि मैंने आपका काम पूरा नहीं किया और इसके बदले आप मुझे वो तरीके भी नहीं बताएंगे जो कि मुझे मेरे बुरे समय से बाहर निकाल सकते हैं, लेकिन मुझे इसका कोई खेद नहीं है। मुझे लगता है कि मैंने जो किया वो सही किया। इसीलिए मैं आप से आज्ञा लेकर वापस जा रहा हूँ। कृपया मुझे वापस अपने घर जाने की आज्ञा दीजिए। ये सुनकर महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा कि अरे बेटा कहाँ चल दिए, रुको तो सही जलपान तो कर लो थोडी देर ठहर जाओ, उसके बाद चले जाना और ये कहकर

वो महात्मा उस युवक के लिए पानी लेकर आते हैं। पानी पिलाने के बाद महात्मा उस युवक से पूछते हैं कि तुम मुझे ये बताओ कि आखिर तुम उन चींटियों का घर तबाह क्यों नहीं कर सके? वो चीटियां तो छोटी छोटी है और तुम इतने विशालकाय हो फिर भी तुम उन छोटी छोटी चींटियों का घर तबाह नहीं कर पाए? कहा है तुम्हारी शक्ति तुम्हारा बाहुबल इसका जवाब देते हुए उस युवक ने कहा की हे महात्मा मैंने उन चींटियों का घर तबाह कर दिया था।

बार बार किया था। एक बार तो अपने गुस्से मैं उन चींटियों को भी मैंने हानि पहुंचा दी थी, लेकिन जीस दिन मैंने उनको हानि पहुंचाई। उसी दिन मेरे को लगा कि मैं इनको क्यों हानि पहुंचा रहा हूँ? क्यों इन को इतनी तकलीफ दे रहा हूँ और उसी दिन से मैंने उनको क्षति पहुंचाने की बजाय नुकसान पहुंचाने की बजाय उनकी सहायता करनी शुरू कर दी। ये सुनकर उस महात्मा ने कहा की ये ही तो सीखने की बात है। एक छोटी सी चींटी हमें जीवन का संदेश दे जाती है।

मैंने तुम्हें उन चींटियों का घर तबाह करने के लिए नहीं भेजा था। मैंने तुम्हें भेजा था ताकि तुम उन चींटियों से कुछ सीख ले सको, तुम्हें क्या सीख मिली उन चींटियों से क्या मुझे बता सकते हो? ये सुनकर उस युवक ने पूरी कहानी बयां कर दी। पूरी कहानी सुनने के बाद महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा कि बेटा पहली सीख जो इन चींटियों से लेने की थी, वो ये थी की तुमने कितनी ही बार उनके घर को तोडने की कोशिश की। कितनी ही बार प्रयास किया कि उनका घर तबाह हो जाए।

लेकिन वो हर बार अपना नया घर बना लेती थी। उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। अगर वो हार मान लेती तो वो चीटियां तुम्हें वहाँ पर नहीं मिलती जीवन कार्यशीलता का नाम है। कर्मशीलता का नाम है, लेकिन हम मनुष्य एक दो बार हार मिलने पर ही टूट जाते हैं, हताश हो जाते हैं और फिर जीवन में प्रयास ही नहीं करते और कुछ लोग तो अपनी ज़िन्दगी को खत्म करने पर उतारू हो जाते हैं, लेकिन जानवरों में तुमने एक बात देखी होगी।

की वो अपना जीवन खुद से, स्वयं से कभी खत्म कर ही नहीं सकते हैं। तुमने कभी नहीं सुना होगा कि किसी जानवर ने आत्महत्या कर ली, चाहे वो जानवर कितना ही भूखा क्यों ना हो, कितना ही दुखी क्यों ना हो लेकिन वह अपने जीवन के लिए हमेशा संघर्ष करता रहता है, लेकिन वहीं पर दूसरी तरफ हम मनुष्य एक दो बार हताश होने पर ही अपना जीवन खत्म कर लेते है। जीवन तो कर्मशीलता है, कर्म करने का नाम है जीवन और मृत्यु आखरी विश्राम है, परम विश्राम है।

इसीलिए मृत्यु से पहले कर्म करना कभी मत छोडना, क्योंकि मृत्यु के बाद तो तुम परम विश्राम में चले ही जाओगे तो उससे पहले कर्म करना क्यों छोड रहे हो? क्यों हताश हो रहे हो? अगर तुम्हारा एक घर टूट गया है तो दूसरा घर बनाने का प्रयास करो, कोशिश करो और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ये तुम उन चींटियों से देख चूके हो।

देखने में तुमसे कितनी छोटी है वो चीटियां और तुम इतने बडे हो लेकिन उनका मन तुम्हारे मन से इतना बडा है, इतना विशाल है। इतना दृढ संकल्प ही है कि इतनी बार घर टूटने पर भी उन चींटियों ने कभी हार नहीं मानी, दूसरी सीखी यहाँ से लेने की थी। वो ये थी की जब भी हमारे ऊपर बुरा समय आता है, हमें लगता है की ये समय कभी नहीं जाएगा। ये समय मेरे जीवन को बर्बाद कर देगा, मुझे कभी नहीं जीने देगा और अपने इन्हीं खयालों से अपने इन्हीं विचारों से जिनका असलियत में कोई भी अस्तित्व नहीं है।

वो सिर्फ विचार है और वही विचार हमारे मन को दुखी कर देते हैं और इसीलिए हम प्रयास करना भी छोड देते हैं। लेकिन तुम खुद सोचो की बार बार प्रकृति हमें क्षति पहुंचायेगी, नुकसान पहुंचाएगी, लेकिन कब तक पहुंचाएगी? अगर हम बार बार फिर से उठ के फिर से नया प्रयास करते रहेंगे तो प्रकृति भी हमारे सामने घुटने टेक देगी और वो भी एक दिन हमारे ऊपर दयावान हो जाएगी, कृपालु हो जाएगी और वो हमें सब कुछ देने लगेगी।

जिसकी हमने कभी कामना की थी। तुमने खुद देखा कि तुम उन चींटियों को तबाह करने के लिए पहुंचे थे, लेकिन बाद में तुम ही उन चिडियों को अनाज और आटा देने लगे। तुम ही उन पर कृपालु हो गए क्यों हुए क्योंकि तुमने देखा की वो चीटियां हार ही नहीं मान रही है? इसी तरह अगर तुम भी अपने जीवन में कभी हार नहीं मानोगे तो एक ना एक दिन ये प्रकृति तुम्हे वो सब कुछ देगी जो तुम अपने जीवन में पाना चाहते थे। इसीलिए दो सीख याद रखना, कर्मशीलता कार्य करते जाना और दूसरा की एक ना एक दिन प्रकृति तुम्हारी उस कर्म का परिणाम तुम्हें जरूर देगी।

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